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उमपा अलंकार
दोन वस्तूंतील साम्य चमत्कृतीपूर्ण रीतीने जेथे दाखविलेले असते, तेथे उपमा हा अलंकार होतो. उपमेत एक वस्तू दुस-यासारखी आहे असे वर्णन असते
उदाहरण
1) मुंबईची घरे मात्र लहान…. कबुतराच्या खुराड्यासारखी ….
2) सावळाच रंग तुझा पावसळि नभापरी
3) आभाळागत माया तुझी आम्हांवरी राहू दे
सामान्यत: उपमा अलंकारात सारखा , जसा, जेवि, सम, सदðश, गत, परी, समान
यांसारखे साम्यवाचक शब्द येतात.
2] रूपक अलंकार
उपमेय व उपमान यांच्यात एकरुपता आहे, ती भिन्न नाहीत असे वर्णन जेथे असते, तेथे रूपक हा अलंकार असतो.
उदाहरण
1) बाई काय सांगो । स्वामीची ती द्रुष्टी ।
अमृताची द्रुष्टी । मज होय ।।(स्वामींची द्रुष्टी व अमृताची द्रुष्टी ही दोन्ही एकरूपच मानली आहेत.)
3] शांत
हा रस कुळे आढळतो - परमेश्वर विषयक भक्ती भाव असलेली गांणी किंवा वातावरणात.
उदा – सर्वात्मका शिवसुंदरा, स्वीकार या अभिवादना, तिमिरातुनि तेजाकंडे प्रभू आमच्या ने जीवंना !
4[ बीभत्स
हा रस कुठे आढळतो - किळस, वीट, तिटकारा इ. च्या वर्णनात.
उदा – मुंबईचा कामगार चाळीतल्या दहा बाय बाराच्या घरात, कचऱ्याच्या ढिगाऱ्याशेजारी, ओकारी आणणाऱ्या दुर्गधीत आयुष्यभर खितपत पडलेला असतो.
Answer:
उपमा अलंकार ( Upma alankar )
जहां एक वस्तु या प्राणी की तुलना अत्यंत समानता के कारण किसी अन्य प्रसिद्ध वस्तु या प्राणी से की जाती है।’
उपमा का अर्थ है – तुलना।
जहां उपमान से उपमेय की साधारण धर्म (क्रिया को लेकर वाचक शब्द के द्वारा तुलना की जाती है )
इस को समझने के लिए उपमा के चार अंगो पर विचार कर लेना आवश्यक है।
१ उपमेय , २ उपमान , ३ धर्म , ४ वाचक।
१ उपमेय अलंकार, ( प्रत्यक्ष /प्रस्तुत )
वस्तु या प्राणी जिसकी उपमा दी जा सके अथवा काव्य में जिसका वर्णन अपेक्षित हो उपमेय कहलाती है। मुख ,मन ,कमल ,आदि
२ उपमान ,( अप्रत्यक्ष / अप्रस्तुत )
वह प्रसिद्ध बिन्दु या प्राणी जिसके साथ उपमेय की तुलना की जाये उपमान कहलाता है – छान ,पीपर ,पात आदि
३ साधारण कर्म
उपमान तथा उपमेय में पाया जाने वाला परस्पर ” समान गुण ” साधारण धर्म कहलाता है जैसे – चाँद सा सुन्दर मुख
४ सादृश्य वाचक शब्द
जिस शब्द विशेष से समानता या उपमा का बोध होता है उसे वाचक शब्द कहलाते है। जैसे – सम , सी , सा , सरिस , आदि शब्द वाचक शब्द कहलाते है।
उपमा के भेद – १ पूर्णोपमा , २ लुप्तोपमा , ३ मालोपमा
१ पूर्णोपमा – जहां उपमा के चारों अंग ( उपमेय , उपमान , समान धर्म , तथा वाचक शब्द ) विद्यमान हो , वहां पूर्णोपमा होती है।
२ लुप्तोपमा – जहां उपमा के चारों अंगों में से कोई एक , दो या तीन अंग लुप्त हो वहां लुप्तोपमा होती है।
लुप्तोपमा के कई प्रकार हो सकते हैं। जो अंग लुप्त होता है उसी के अनुसार नाम रखा जाता है। जैसे –
३ मालोपमा – जब किसी उपमेय की उपमा कई उपमानों से की जाती है , और इस प्रकार उपमा की माला – सी बन जाती है , तब मालोपमा मानी जाती है।
उपमा अलंकार के उदाहरण
‘ उसका मुख चंद्रमा के समान है ‘ –
इस कथन में ‘ मुख ‘ रूप में है ‘ चंद्रमा ‘ उपमान है।’ सुंदर ‘ समान धर्म है और ‘ समान ‘ वाचक शब्द है।
‘ नील गगन – सा शांत हृदय था हो रहा। –
इस काव्य पंक्ति में उपमा के चार अंग ( उपमेय – हृदय , उपमान – नील गगन , समान धर्म – शांत और वाचक शब्द सा ) विद्यमान है। अतः यह पूर्णोपमा है।
‘ कोटी कुलिस सम वचन तुम्हारा ‘ –
इस काव्य पंक्ति में उपमा के तीन अंग ( उपमेय – वचन , उपमान -कुलिश और वाचक – सम विद्यमान है , किंतु समान धर्म का लोप है।) अतः यह लुप्तोपमा का उदाहरण है। इसे ‘ धर्मलुप्ता ‘ लुप्तोपमा कहेंगे।
‘ हिरनी से मीन से , सुखंजन समान चारु , अमल कमल से , विलोचन तिहारे हैं। ‘
‘ नेत्र ‘ उपमेय के लिए कई उपमान प्रस्तुत किए गए हैं , अतः यहां मालोपमा अलंकार है।
अन्य उदाहरण
स्वान स्वरूप रूप संसार है।
वेदना बुझ वाली – सी।
मृदुल वैभव की रखवाली – सी।
चांदी की सी उजली जाली।
रोमांचित सी लगती वसुधा।
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम।
सुख से अलसाए – से – सोए।
एक चांदी का बड़ा – सा गोल खंभा।
चंवर सदृश डोल रहे सरसों के सर अनंत।
कोटि कुलिस सम वचनु तुम्हारा।
सहसबाहु सम सो रिपु मोरा
लखन उत्तर आहुति सरिस।
भृगुवर कोप कृशानु , जल – सम बचन।
भूली – सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण।
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह बंधन है स्त्री जीवन।
चट्टान जैसे भारी स्वर
दूध को सो फैन फैल्यो आंगन फरसबंद।
तारा सी तरुणी तामें ठाडी झिलमिल होती।
आरसी से अंबर में।
आभा सी उजारी लगै।
बाल कल्पना के – से पाले।
आवाज से राख जैसा कुछ गिरता हुआ।
हाय फूल सी कोमल बच्ची , हुई राख की ढेरी थी।
यह देखिये , अरविन्द – शिशु वृन्द कैसे सो रहे।
मुख बाल रवि सम लाल होकर ज्वाला – सा हुआ बोधित।
5. रूपक अलंकार ( Rupak alankar )
जहां गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय में उपमान का भेद आरोप कर दिया जाए वहाँ रूपक अलंकार होता है। इसमें वाचक शब्द का प्रयोग नहीं होता।
उदाहरण
=> मैया मै तो चंद्र खिलोना लेहों।
यहाँ चन्द्रमा उपमेय / प्रस्तुत अलंकार है ,खिलौना उपमान / अप्रस्तुत अलंकार है।
=> चरण – कमल बन्दों हरि राई।
चरण – उपमेय / प्रस्तुत अलंकार और कमल – उपमान / अप्रस्तुत अलंकार।
” बीती विभावरी जाग री
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा घट उषा नागरी ”
तारा – उपमेय / प्रस्तुत अलंकार
घट – उपमान / अप्रस्तुत अलंकार।
” उदित उदय गिरि मंच पर , रघुवर बाल पतंग।
विकसे संत सरोज सब , हरषे लोचन भृंग। “
सांगोपांग रूपक अलंकार का सर्वश्रेष्ठ उदहारण है।
6 उत्प्रेक्षा अलंकार ( Utpreksha alankar )
जहां रूप , गुण आदि समानता के कारण उपमेय में