Give short information about ancient education Vs modern education in Hindi
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जो व्यक्ति नवयुवको की शिक्षा दीक्षा के प्रति अपने उत्तरदायित्व का अनुभव करते है. वे इतिहास के विभिन्न युगों में शिष्य को शिक्षित करने के विविध उपाय अपनाते है. इन सबसे प्रारम्भिक उपाय दंड देने का भय प्रदर्शित करना है.इसका तात्पर्य था मंद बुद्धि असावधान या अन्यमनस्क छात्र या तो शारीरिक दंड मिलने के कारण भयभीत रहता था. अथवा उसे यह आशंका बनी रहती थी कि वह आगे चलकर किसी विशेष सुविधा से वंचित कर दिया जाएगा. इस प्रकार उन लोगों के प्रति शिक्षा प्राप्ति एक सीमा तक भय की भावना से जुड़ी हुई थी. जो कुछ विषयों पर अधिकार करना कठिन समझते थे.आगे चलकर शिष्यों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए इस आधार पर प्रोत्साहित किया जाने लगा कि उसके द्वारा उन्हें किसी प्रकार का लाभ मिलेगा. यह लाभ प्राय दैनिक वर्ष की समाप्ति पर सर्वश्रेष्ट विद्वान को पुरस्कार देना भी इसी का एक रूपांतरण था. किन्तु इसका प्रभाव लगभग उतना ही अवसाधक होता था.जितना कि उस दंड विधान प्राचीन पद्दति का जो मंद बुद्धि पर उत्साही शिष्य की उपेक्षा करती थी.
उक्त दोनों शिक्षा पद्धतियों पर विचार करने के पश्चात ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन अध्यापक या तो अपने शिष्यों को कुछ सिखाने के लिए बाध्य करते थे. अथवा उन्हें प्रलोभन देते थे. फिर भी उन्नीसवी शताब्दी में एक भिन्न प्रकार के अध्यापक का उदय हुआ जिसकी यह सुनिश्चित धारणा थी कि शिक्षा दीक्षा अपने आप में स्वत सम्पूर्ण तथा सार्थक होती है.
उनका विचार था कि युवा की प्रमुख अध्येता की प्रमुख अभिप्रेरणा न तो दंड से बचने की चिंता होनी चाहिए और न ही किसी प्रकार का पुरस्कार पाने की महत्वकांक्षा होनी चाहिए.
उनकी अभिप्रेरणा विशुद्ध शिक्षा की आकांक्षा पूर्ति होनी चाहिए. इन अध्यापको ने शिक्षा प्राप्ति की प्रक्रिया को सुखद बनाने के लिए सर्वोतम उपाय खोज कर निकाले और जहाँ तक संभव नही था, वहां उन्होंने यह प्रदर्शित किया था कि कठोर परिश्रम करना व्यवहरिकता की द्रष्टि से अध्येता के लिए किस प्रकार मुल्यांकन होता है. प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सुरुचि उत्पन्न करना ही शिक्षण कला का मूल सिद्धांत बन गया है और यह सिद्धांत अभी तक वैसा ही है.
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एनिवर्सरी एजुकेशन सिस्टम को भारतीय शिक्षा प्रणाली के रूप में जाना जाता था। यह ज्योतिष और बुनियादी ज्ञान पर आधारित था। राजाओं और पुजारी के पुत्रों को केवल पढ़ाई की अनुमति थी। लड़कियों को मुख्य रूप से शिक्षा प्राप्त करने के लिए मना किया गया था।
स्कूली शिक्षा एक इमारत के बजाय बाहर आयोजित की गई थी और गुरुकुल वहां थे जहां सभी छात्रों को आदिवासी के रूप में समान रूप से व्यवहार किया जाता है, और इस वजह से, उन्हें जंगलों से जंगल काटना पड़ा और अपने लिए ऐसा काम करना पड़ा।
छात्रों को यह जानने के लिए कि वे क्या पढ़ रहे हैं, बजाय इसे लिखने के लिए रत्ता मरना करने के लिए बनाया गया था ।
इस प्रकार की व्यवस्था को अंग्रेजों द्वारा अत्यंत विचित्र और अवर माना जाता था और इसलिए उन्होंने शिक्षा की व्यवस्था को बदल दिया ।