Hindi, asked by Anonymous, 6 months ago

give the summary of the hindi story SAMMAN KI VAPSI in english. best answer will be marked as brainliest. bad answers will be reported.thank you.

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प्रवक्ता.कॉम द्वारा आगामी 29 अक्टूबर 2015, गुरुवार को “सम्मान वापसी : प्रतिरोध या पाखंड” विषय पर सायं 5:00 बजे दिल्ली के दीनदयाल उपाध्याय मार्ग स्थित हिंदी भवन सभागार(आईटीओ मेट्रो से नजदीक) में एक संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है. हाल में जिस प्रकार से साहित्य अकदामी सम्मान वापसी का जो विमर्श पूरे देश में खड़ा हुआ है, ने इस बहस को जन्म दिया है कि क्या साहित्यकारों का यह कदम किसी विचारधारा के पूर्वाग्रह से प्रेरित है अथवा यह महज एक राजनीतिक विरोध है ? चूँकि सम्मान वापसी की शुरुआत से ही इसका विरोध करते हुए डॉ नामवर सिंह, श्री राम दरश मिश्र व सुश्री चित्रा मुदगल जैसे प्रख्यात साहित्यकारों ने इसको सस्ती लोकप्रियता पाने का जरिया बताया है. ऐसे में प्रवक्ता.कॉम ‘सम्मान वापसी: प्रतिरोध या पाखंड’ विषयक संगोष्ठी का आयोजन कर इस विषय पर एक खुली बहस का मंच उपलब्ध करा रहा है. संगोष्ठी में इस विषय पर चर्चा के लिए साहित्य एवं पत्रकारिता के बड़े हस्ताक्षर श्री नरेंद्र कोहली, बलदेव वंशी, कमल किशोर गोयनका, श्री अच्युतानन्द मिश्र, श्री राहुल देव, श्री राम बहादुर राय, श्री बलदेव भाई शर्मा सहित संस्कृति एवं कला के क्षेत्र से श्री दया प्रकाश सिन्हा व सुश्री मालिनी अवस्थी मौजूद रहेंगे. इसके अतिरिक्त साहित्य, कला एवं पत्रकारिता के क्षेत्र से कई दिग्गज उपस्थित रहेंगे

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☆☞ [ Verified answer ]☜☆

1915 में एक भारतीय बैरिस्टर ने दक्षिण अफ्रीका के अपने करियर को त्याग अपने देश वापस आने का फैसला किया। जब मोहनदास करमचंद गांधी मुंबई के अपोलो बंदरगाह में उतरे तो न वो महात्मा थे और न ही बापू।

फिर भी न जाने क्यों बहुतों को उम्मीद थी कि ये शख्स अपने गैर-परंपरागत तरीकों से भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद करा लेगा। उन्होंने भारतवासियों को निराश नहीं किया। इसे इतिहास की विडंबना ही कहा जाएगा कि जब गांधी भारत लौटे तो एक समारोह में उनका स्वागत किया था बैरिस्टर मोहम्मद अली जिन्ना ने।

ये अलग बात है कि पांच साल के भीतर ही गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र से आने वाले इन धुरंधरों ने अलग-अलग राजनीतिक रास्ते अख्तियार किए और भारत और पाकिस्तान के राष्ट्रपिता कहलाए।

1915 से लेकर 1920 के बीच महात्मा गांधी ने किस तरह अपने आपको भारत के राजनीतिक पटल पर स्थापित किया। पढ़िए, महात्मा गांधी के स्वदेश वापस आने पर कई अनुछुए पहलू।

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भारत लौटते वक्त महात्मा गांधी की उम्र क्या थी?

नौ जनवरी 1915 को जब अरबिया जहाज ने मुंबई के अपोलो बंदरगाह को छुआ, उस समय मोहनदास करमचंद गांधी की उम्र थी 45 साल। 12 साल से उन्होंने अपनी जन्म भूमि के दर्शन नहीं किए थे।

उस जमाने में सिर्फ ब्रिटिश सरकार के खास आदमियों और राजा महाराजाओं को ही अपोलो बंदरगाह पर उतरने की अनुमति दी जाती थी। गांधी को ये सम्मान सर फिरोजशाह मेहता, बीजी हॉर्निमेन और गोपाल कृष्ण गोखले की सिफारिश पर दिया गया था।

जब गांधी जहाज से उतरे तो उन्होंने एक लंबा कुर्ता धोती और एक काठियावाड़ी पगड़ी पहनी हुई थी। उनसे मिलने आए लोगों ने या तो यूरोपियन सूट पहने हुए थे या फिर वो राजसी भारतीय पोशाक में थे।

बीमार होते हुए भी उनके राजनीतिक गुरू गोपाल कृष्ण गोखले पूना से उनसे मिलने बंबई आए थे। एक स्वागत समारोह की अध्यक्षता फिरोज शाह मेहता ने की थी तो दूसरे समारोह में एक साल पहले जेल से छूट कर आए बाल गंगाधर तिलक मौजूद थे।

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'लोगों को मेरी असफलताओं के बारे में नहीं पता'

इसी समारोह में जब गांधी की तारीफों के पुल बांधे जा रहे थे तो उन्होंने बहुत विनम्रता से कहा था, "भारत के लोगों को शायद मेरी असफलताओं के बारे में पता नहीं है। आपको मेरी सफलताओं के ही समाचार मिले हैं। लेकिन अब मैं भारत में हूं तो लोगों को प्रत्यक्ष रूप से मेरे दोष भी देखने को मिलेंगें। मैं उम्मीद करता हूं कि आप मेरी गलतियों को नजरअंदाज करेंगे। अपनी तरफ से एक साधारण सेवक की तरह मैं मातृभूमि की सेवा के लिए समर्पित हूं।"

दक्षिण अफ्रीका में अपना लोहा मनवाने के बाद गांधी की ख्याति भारत भी आ पहुंची थी और अंग्रेज सरकार ने उन्हें गंभीरता से लेने का फैसला लिया था।

महात्मा गांधी के पौत्र और उनकी जीवनी लिखने वाले राजमोहन गांधी कहते हैं, "गोखले के कहने पर गांधी बंबई के गवर्नर विलिंगटन से मिले थे और उनके कहने पर उन्हें ये आश्वासन दिया था कि सरकार के खिलाफ कोई कदम उठाने से पहले वो गवर्नर को सूचित करेंगे। शायद सरकार भी गांधी को अपने खिलाफ नहीं करना चाहती थी, इसलिए उनके भारत आने के कुछ समय के भीतर ही उसने दक्षिण अफ्रीका में की गई उनकी सेवाओं के लिए कैसरे-हिंद के खिताब से नवाजा था।"

विश्वनाथ मंदिर में दक्षिणा देने से इंकार

गांधी ने गोखले की सलाह का पालन करते हुए पहले भारत के लोगों को जानने की कोशिश शुरू की। उन्होंने तय किया कि वो पूरे भारत का भ्रमण करेंगे और वो भी भीडं से भरे तीसरे दर्जे के रेल के डिब्बे से। तीसरे दर्जे के सफर में उनका लंबा कुर्ता और काठियावाड़ी पगड़ी बाधक साबित हुई, इसलिए उन्होंने उसका त्याग कर दिया।

गांधी के एक और जीवनीकार सुई फिशर लिखते हैं कि लोगों के छूने से उनके पैर और पिंडली इतनी खुरच जाती थी कि वहां पर गांधी के सहायकों को वेसलीन लगानी पडंती थी।

बाद में उनकी अंग्रेज साथी मेडलीन स्लेड ने, जिन्हें गांधी मीराबेन कहा करते थे ने कुछ पत्रकारों को बताया कि वो खुद गांधी के पैरों को हर रात शैंपू से धोया करती थीं।

अपनी भारत यात्रा शुरू करने से पहले गांधी गोखले और तिलक से मिलने पुणे गए। उसके बाद वो राजकोट पहुंचे और फिर रवींद्रनाथ टैगोर से मिलने शांतिनिकेतन। वहीं उन्हें गोखले के निधन की सूचना मिली। वो वापस पुणे लौटे और शोक के तौर पर उन्होंने चप्पलें पहनना भी छोड़ दीं।

गोखले के शोक समारोह में भाग ले कर वो वापस शांति निकेतन लौटे जहां टैगोर ने उन्हें पहली बार महात्मा शब्द से संबोधित किया। वहां से वो बनारस गए। वहां पर उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर में दक्षिणा देने से इंकार कर दिया।

एक पंडे ने उनसे कहा, "भगवान का ये अपमान तुझे सीधे नर्क में ले जाएगा।" इसके बाद गांधी तीन बार बनारस गए लेकिन उन्होंने एक बार भी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन नहीं किए।

चंपारण आंदोलन

1916 के कांग्रेस अधिवेशन में वो पहली बार जवाहरलाल नेहरू से मिले। वहीं बिहार से राज कुमार शुक्ल आए हुए थे। उन्होंने गांधी को चंपारण के नील पैदा करने वाले किसानों की व्यथा बताई और किसी तरह उन्हें वहां आने के लिए राजी कर लिया।

जब गांधी पटना पहुंचे तो शुक्ल उन्हें नील किसानों के वकील डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के निवास पर ले गए। उस समय राजेंद्र प्रसाद अपने घर पर नहीं थे।

jai siya ram☺ __/\__

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