global warming poem in Hindi
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I don't know what you tell ing
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Explanation:
देखो देखो कैसा कलयुग आया
कभी होती थी जहां पेड़ो की छाया
अब बची है सुखी और बंजर धरा
जहां बहती थी कल -कल करती नदिया
अब सुख गया नदियों का पानी
देखो देखो कैसा कलयुग आया
हमने दिए धरती माँ को इतने जख्म
की अब हर दिन बाढ़, तूफान और भूकंप आया
देखो देखो कैसा कलयुग आया
साँस लेना हो रहा दुर्भर
वन्य जीव हो रहा है विलुप्त
देखो देखो कैसा कलयुग आया
बढ़ रहा है तापमान, पिघल रहा ग्लेसियर
कही और नही मिलेगा ऐसा स्वच्छ वातावरण
क्यों कर रहा है अपनी मनमानी
सुधर जा ए मानव नहीं
वो दिन दूर नही जब प्रलय आया
-nerendra verma
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