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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । समाज का प्रभाव व्यक्ति पर पड़े बिना नहीं रहता । समाज में सदाचारी और दुराचारी दोनों प्रकार के लोग रहते हैं । दोनों का प्रभाव समाज पर पड़ता है ।
‘सत्संग’ दो शब्दों से मिलकर बना है – सत+संग। सत का अर्थ है अच्छा और संग कहते हैं-साथ को अर्थात अच्छे लोगों का साथ करना । सत्संग मानव जीवन के लिए अनिवार्य है । यह वह साबुन है जो मनुष्य के मन के मैल को धोकर शुद्ध बनाता है । ‘सत’ सत्य को भी कहा जाता है । सत्य सदा निर्मल होता है । जिस प्रकार तन की शुद्धि जल से होती है उसी प्रकार मन की शुद्धि सत्य से होती है ।
सत्संग से सदाचार, धर्मभावना, कर्त्तव्यनिष्ठा और सदभावना आदि गुणों का उदय होता है । सत्संग से आत्मा पुष्ट और पवित्र होती है । सत्संग करने वाला व्यक्ति मन, वचन और कर्म से एक जैसा व्यवहार करता है । उसकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं होता । सत्संग की महिमा सभी संतों ने गाई है । मन की स्व्छता बिना सत्संग के नहीं आ सकती ।
कुसंगति का मानव जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है । कुसंगति से सदा हानि ही होती है । मनुष्य कितना ही सतर्क और सावधान रहे कुसंगति काजल कि कोठरी के समान है । सत्संग के अनेक साधन हैं । सभी धर्मों की पुस्तकें सत्संग पर बल देती हैं । सत्संग ही कल्याण मार्ग है । अतः सभी को सत्संग मार्ग पर चलना चाहिए ।