gram Shree path ke Aadhar par faslo ka Sachitra varnan kijiye
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इस कविता में गाँव के खेतों के सौंदर्य का चित्रण हुआ है। यदि आप गाँव में नहीं भी रहते हों तब भी आपने बसों या रेल में सफर करते समय गाँव की नैसर्गिक सुंदरता को जरूर निहारा होगा। दूर दूर तक ऐसा लगता है जैसे हरे रंग की मखमल की चादर बिछी हुई हो और उसपर जब सूरज की किरणें चमकती हैं तो लगता है जैसे किसी ने चांदी का जाल बिछा दिया हो। घास के हरे तन पर लगता है हरे वस्त्र हवा में हिल रहे हों। जब आप दूर क्षितिज पर देखेंगे तो लगेगा जैसे सांवली सी धरती पर निर्मल नीला आकाश अपने पलक बिछा रहा हो।
जौ और गेहूं में बालियाँ आ जाने से धरती खुशी से रोमांचित लग रही है। ये बालियाँ धरती की दंतपंक्तियों की तरह लग रही है। उस रोमांच की शोभा अरहर और सन वसुधा की करघनी बनकर बढ़ा रही हैं। सरसों के पीले फूल अपना तैलीय सुगंध बिखेर रहे हैं। साथ में तीसी के नीले फूल मानों नीलम पत्थर के नगीने की तरह दिख रहे हैं।
मटर के पौधे ऐसे लग रहे हैं जैसे सखियाँ मखमल की पेटियों में बीज छिपा कर खड़ी होकर हंस रही हैं। रंग बिरंगी तितलियाँ रंगीले फूलों पर उड़ रही हैं और हवा के झोंके से जब फूल एक डाली से दूसरी डाली को छूते हैं तो लगता है वे खुशी से फूले नहीं समा रहे हैं। समूचे तौर पर देखा जाए तो रंगों की छटा बिखरी हुई है।
आम के पेड़ की डाली चांदी और सोने की मंजरियों से लद गये हैं। आम के बौर की खुशबू आप पर नशे जैसा असर कर सकती है। पीपल के पत्ते झरने शुरु हो गये हैं और कोयल वसंत ऋतु की मादकता में मतवाली हो गई है। कटहल के पेड़ों से और अधखिले जामुन के फूलों से माहौल महकने लगा है। झरबेरी की झाड़ियाँ भी फूलों के वजन से लदकर झूलने लगी हैं। साथ में अन्य पौधों के फूल पूरी तस्वीर को मूर्त रूप दे रहे हैं।
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जौ और गेहूं में बालियाँ आ जाने से धरती खुशी से रोमांचित लग रही है। ये बालियाँ धरती की दंतपंक्तियों की तरह लग रही है। उस रोमांच की शोभा अरहर और सन वसुधा की करघनी बनकर बढ़ा रही हैं। सरसों के पीले फूल अपना तैलीय सुगंध बिखेर रहे हैं। साथ में तीसी के नीले फूल मानों नीलम पत्थर के नगीने की तरह दिख रहे हैं।
मटर के पौधे ऐसे लग रहे हैं जैसे सखियाँ मखमल की पेटियों में बीज छिपा कर खड़ी होकर हंस रही हैं। रंग बिरंगी तितलियाँ रंगीले फूलों पर उड़ रही हैं और हवा के झोंके से जब फूल एक डाली से दूसरी डाली को छूते हैं तो लगता है वे खुशी से फूले नहीं समा रहे हैं। समूचे तौर पर देखा जाए तो रंगों की छटा बिखरी हुई है।
आम के पेड़ की डाली चांदी और सोने की मंजरियों से लद गये हैं। आम के बौर की खुशबू आप पर नशे जैसा असर कर सकती है। पीपल के पत्ते झरने शुरु हो गये हैं और कोयल वसंत ऋतु की मादकता में मतवाली हो गई है। कटहल के पेड़ों से और अधखिले जामुन के फूलों से माहौल महकने लगा है। झरबेरी की झाड़ियाँ भी फूलों के वजन से लदकर झूलने लगी हैं। साथ में अन्य पौधों के फूल पूरी तस्वीर को मूर्त रूप दे रहे हैं।
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कविता में गंगा किनारे के एक खेत का मनोहारी चित्रण किया गया है । कविता का सार इस प्रकार है :
खेतो में दूर दूर तक हरियाली फैली हुई है । सूर्य की किरणे छाई हुई है । तिनको में हरियाली की चमक है । धरती पर नीला आकाश झुका हुआ है । सारी धरती रोमांचित है । जौ और गेहूं में बालियाँ आई हुई है । अरहर और सन की सुंदर किंकनिया उग आई है ।
चारो और पिली सर्सो है । हवा में तैलीय गंध छा गयी है ।
रंग बिरंगे फूलो के बिच मटर की फसल खिली हुई है । उन पर विविध रंगो की तितलियाँ मंडरा रही है । आम के पेड़ो की डालियों पर सुनहरी मंजरियाँ आ गयी है ।
हरियाली मानो हँसमुख सी मनोरम सी है । सर्दी की धूप सुहानी है । वहाँ की कोमल शान्ति अपनी शोभा से जन मन को हर लेती है ।
★ AhseFurieux ★
खेतो में दूर दूर तक हरियाली फैली हुई है । सूर्य की किरणे छाई हुई है । तिनको में हरियाली की चमक है । धरती पर नीला आकाश झुका हुआ है । सारी धरती रोमांचित है । जौ और गेहूं में बालियाँ आई हुई है । अरहर और सन की सुंदर किंकनिया उग आई है ।
चारो और पिली सर्सो है । हवा में तैलीय गंध छा गयी है ।
रंग बिरंगे फूलो के बिच मटर की फसल खिली हुई है । उन पर विविध रंगो की तितलियाँ मंडरा रही है । आम के पेड़ो की डालियों पर सुनहरी मंजरियाँ आ गयी है ।
हरियाली मानो हँसमुख सी मनोरम सी है । सर्दी की धूप सुहानी है । वहाँ की कोमल शान्ति अपनी शोभा से जन मन को हर लेती है ।
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