History, asked by akshaybade, 1 year ago

gramchitra bhavarth

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Answered by namratasingh23
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Explanation:

यहाँ नहीं है चहल पहल वैभव विस्मित जीवन की, 

यहाँ डोलती वायु म्लान सौरभ मर्मर ले वन की !

आता मौन प्रभात अकेला, संध्या भरी उदासी, 

यहाँ घूमती दोपहरी में स्वप्नों की छाया सी !

यहाँ नहीं विद्युत दीपों का दिवस निशा में निर्मित, 

अँधियाली में रहती गहरी अँधियाली भय-कल्पित !

यहाँ खर्व नर (वानर ?) रहते युग युग से अभिशापित, 

अन्न वस्त्र पीड़ित असभ्य, निर्बुद्धि, पंक में पालित !

यह तो मानव लोक नहीं रे, यह है नरक अपरिचित, 

यह भारत का ग्राम,-सभ्यता संस्कृति से निर्वासित !

झाड़ फूँस के विवर,-यही क्या जीवन शिल्पी के घर ?

कीड़ों-से रेंगते कौन ये ? बुद्धि प्राण नारी नर ?

अकथनीय क्षुद्रता, विवशता भरी यहाँ के जन में, 

गृह-गृह में है कलह, खेत में कलह, कलह है मग में ?

यह रवि शशि का लोक,-जहाँ हँसते समूह में उडुगण, 

जहाँ चहकते विहग, बदलते क्षण क्षण विद्युत् प्रभ घन !

यहाँ वनस्पति रहते, रहती खेतों की हरियाली, 

यहाँ फूल हैं, यहाँ ओस, कोकिला, आम की डाली !

ये रहते हैं यहाँ, और नीला नभ, बोई धरती

सूरज का चौड़ा प्रकाश, ज्योत्स्ना चुपचाप विचरती !

प्रकृति धाम यह: तृण तृण कण कण जहाँ प्रफुल्लित जीवित, 

यहाँ अकेला मानव ही रे चिर विषण्ण जीवन-मृत !!

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