Hindi, asked by sharmy, 1 year ago

Gramin Jeevan par anuched likhiye​

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Answered by pinkykumari52
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भारत एक विशाल जनसंख्या वाला देश है जिसका एक बहुत बड़ा भाग आज भी गाँवों में निवास करता है । ये लोग आज भी अपनी आजीविका के लिए पूर्ण रूप से कृषि पर निर्भर हैं । वास्तविक रूप में यदि देखा जाए तो भारत की अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार कृषि ही है ।

गाँवों में लोग प्राय: सादा जीवन व्यतीत करते हैं । भारतीय ग्राम्य जीवन की जब भी बात होती है तो तपती हुई धूप में खेती करता हुआ किसान, दूर-दूर तक फैले हुए खेत और उन पर लहलहाती हरी – भरी फसल घर का काम-काज सँभालती हुई औरतें तथा हाट (बाजार) व मेले के दृश्य स्वत: ही मन-मस्तिष्क पर उभर आते हैं ।

प्रदूषण से दूर स्वच्छ, सुगंधित व ताजी हवा गाँव की और अनायास ही खींचती है । सभी ग्रामवासियों का मिल-जुल कर एक परिवार की भाँति रहना तथा एक-दूसरे को यथासंभव सहयोग करने हेतु सदैव तत्पर रहना हमारे ग्रामीण जीवन की विशेषता है।

ग्रामीण जीवन में मनोरंजन हेतु अनुपम व अनूठे साधन उपलब्ध हैं । लोग तरह-तरह से अपना व दूसरों का मनोरंजन करते हैं । प्राय: दिन में कार्य करने के पश्चात् सायंकाल को लोग चौपाल अथवा किसी प्रांगण आदि पर एकत्र होते हैं जहाँ वे तरह-तरह की बातों से अपना मन बहलाते हैं ।

कुछ लोग धार्मिक कथाओं जैसे श्रीराम अथवा श्रीकृष्ण आदि के जीवन-चरित्र पर चर्चा करते हैं । प्राय: लोग मंडली बनाकर ढोल मजीरे आदि वाद्‌य यंत्रों के साथ बैठकर संगीत व नृत्य का आनंद उठाते हैं । गायन में लोकगीत व भजन आदि प्राय: सुनने को मिलते हैं ।

विभिन्न त्योहारों का पूर्ण आनंद व उल्लास ग्राम्य जीवन में भरपूर देखने को मिलता है । दशहरा, दीवाली तथा होली आदि त्योहार ग्रामवासी परस्पर मिल-जुल कर व बड़े ही पारंपरिक ढंग से मनाते हैं । ग्रामीण मेले का दृश्य तो अपने आप में अनूठा होता है । भारतीय संस्कृति का मूल रूप इन्हीं मेलों व गाँव के जीवन में पूर्ण रूप से देखा जा सकता है ।

ग्रामवासी प्राय: सीधे व सरल स्वभाव के होते हैं । उनमें छल-कपट व परस्पर द्‌वेष का भाव बहुत कम देखने को मिलता है । उनमें धार्मिक आस्था बहुत प्रबल होती है। बड़ों की आज्ञा मानना व उन्हें सम्मान देना यहाँ की संस्कृति में है|यदि गाँवों को विकास की दृष्टि से देखा जाए तो हम पाएँगे कि देश के अधिकांश माँस शहरों की तुलना में बहुत पीछे हैं । लाखों करोड़ों लोग आज भी निर्धनता की रेखा से नीचे जी रहे हैं । कितने ही लोग हर वर्ष भुखमरी, महामारी आदि के शिकार हो जाते हैं । गाँवों में आज भी अधिकांश लोग अशिक्षित हैं । अंधविश्वास व धर्मांधता के चलते उनमें परिवर्तन लाना बहुत मुश्किल है ।दूसरी ओर गाँव पहले काफी हरे – भरे थे, गाँव के चारों ओर एक हरित पट्‌टी सी थी जो अब धीरे-धीरे नष्ट हो चुकी है । इसके कारण गाँव में पशुओं के लिए हरे चारे की समस्या खड़ी हो गई है । गाँव के लोग अब लड़कियों के लिए भी शहरों पर निर्भर होते जा रहे हैं । बहुत से गाँवों के कुटीर उद्‌योग- धंधे भी इन्हीं कारणों से नष्ट हो गए हैं ।

देश की लगभग दो-तिहाई आबादी गाँवों में ही निवास करती है । यदि हम अपने देश की उन्नति चाहते हैं तो हमें गाँवों की अवस्था में सुधार लाना होगा । भारतीय गाँवों को विकास की प्रमुख धारा में लाए बिना देश को ऊँचाई पर ले जाना असंभव है ।

अत: यह आवश्यक है कि अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचाए रखने के साथ ही हम गाँवों के विकास हेतु नई-नई योजनाएँ विकसित करें और उन्हें कार्यान्वित करें । इस प्रकार निश्चय ही हमारा देश विश्व के अग्रणी देशों में से एक होगा ।

it is too long !!!!

but I think it helps u

Answered by asnshu65
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Explanation:

प्रस्तावना:

भारत एक कृषि प्रधान देश है । यही की अधिकाश आबादी गाँवो में रहती है । गाँव के अधिकतर लोग धरती पर खेती करके अपनी आजीविका चलाते हैं, वे प्रतिदिन प्रातःकाल जल्दी उठकर खेतों में चले जाते हैं और अधेरा होने तक दिन भर कड़ी धूप, सर्दी या वर्षा की परवाह किए बिना खुले में कड़ी मेहनत करते है । हल चलाने, खेतों की मिट्टी ठीक करने, बीज बोने, खरपतवार हटाने, सिंचाई करने और फसल काटने में ही उनका अधिकांश समय लग जाता है ।

सरल और सीधा-सादा जीवन:

भारत के ग्रामीण बडा सीधा-सादा और सरल जीवन बिताते हैं । वे आमतौर से कच्चे मकानों में रहते है, जिन पर खपरैल और फूँस की छतें होती है । उनमें प्रकाश्ना हवा आने-जाने के लिए खिडकियों और रोशनदान प्राय: नहीं होते । किसान खुल और शुद्ध वायु में सांस लेते हैं और सादा भोजन खाते हैं, जिससे उनका स्वास्थय ठीक रहता है और वे बलवान होते है ।

उनके परिवार कर्मठता और आपसी सहयोग का बडा सुन्दर उदाहरण पेश करतें है । ग्रामीण महिलायें घर का समूचा काम करने के अलावा अपने पतियों की खेती के कामों में भी मदद करती हैं । अक्सर छोटे-छोटे बच्चे भी अपने मां-बाप के कामों में भरपूर योगदान देते हैं । समूचे परिवार को मिल-जुलकर काम करते देख बड़ी प्रसन्नता होती है ।

ग्रामीण जीवन का आनन्द:

उपर्युक्त कथन का यह अर्थ नहीं है कि गांववासी हर समय केवल काम में ही लगे रहते है और मनोरंजन के लिए उनके पास कोई समय नहीं होता । खेती का काम मौसमी होता है । साल में तीन महीने तक खेत में करने को कुछ नहीं रहता ।

यह समय उनके आराम और आनन्द का समय होता है । इसके अलावा फसल काटते समय वे मिल-जुलकर गाते-नाचते और खुशियाँ मनाते हैं । खेतों में जब काम नहीं होता, तो आपस में मिलकर वे तरह-तरह के लोकनृत्यों में भाग लेते है । दैनिक जीवन में भी वे आनन्द के क्षण निकाल ही लेते है ।

दोपहर में पेडों की छाया में बैठे वे हुक्का गुड़गुड़ाते हैं या बीड़ी पीने का आनन्द लेते हैं । शाम को वे चौपाल पर इकट्‌ठे होकर एक-दूसरे के सुख-दुःख का हाल जानते हैं और हंसते-गाते लौटकर सो जाते हैं । उन्हें जीवन में कोई विशेष चिन्ता नहीं सताती ।

ग्रामीण जीवन की बुराइयां:

ग्रामीण जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप वही व्याप्त निरक्षरता है । अनपढ़ होने के कारण वे चालाक लोगों के कहने में आसानी से आ जाते है और अपना नुकसान कर बैठते हैं । वे अनेक रूढियों के शिकार रहते हैं । उनके अन्धविश्वास का लाभ अनेक ओझा, सयाने और पण्डित उठाते है । उनमें बाल-विवाह की प्रथा व्यापक रूप से फैली हुई है, जिसके कारण अनेक सामाजिक बुराइयाँ पैदा होती हैं ।

ग्रामीणों के बीच विवाह, जन्म, मृत्यु जैसे सामाजिक अवसरों पर अपनी सामर्थ्य से बढ़कर खर्च करने की प्रथा है । इसके फलस्वरूप वे कर्ज़ के बोझ से दबे रहते हैं । गांवों में छोटी-छोटी बातों को लेकर अक्सर लड़ाई-झगड़े होते हैं और जरा-जरा सी बा

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