gramin vikas me panchayati raj sansthao ki bhumika ka aalochnatmak parishadh kijiye
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Explanation:
लोकतांत्रीय राजनीतिक व्यवस्था में पंचायती राज वह माध्यम है, जो शासन को सामान्य जनता के दरवाजे तक लाता है। लोकतंत्र की संकल्पना को अधिक यर्थाथ में अस्तित्व प्रदान करने की दिशा में पंचायती राज व्यवस्था एक ठोस कदम है। पंचायती राज व्यवस्था में स्थानीय जनता की स्थानीय शासन कार्यों में अनवरत रूचि बनी रहती है, क्योंकि वे अपनी स्थानीय समस्याओं का स्थानीय पद्धति से समाधान कर सकते हैं। अत: इस अर्थ में भागीदारिता की प्रक्रिया के माध्यम से जनता को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से शासन एवं प्रशासन का प्रशिक्षण स्वत: ही प्रदान रहती है।
देश में ग्रामीण विकास की दिशा में सर्वप्रथम गरीबों एवं ग्रामीण विकास के शुभचिंतक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के जन्म दिवस के शुभ अवसर पर 2 अक्टूबर 1952 को भारतीय शासन ने सामुदायिक विकास कार्यक्रम का शुभारंभ किया। 2 अक्टूबर 1952 को राष्ट्रीय विस्तार सेवा का शुभारंभ किया गया। ग्रामीण भारत में निवास कर रहे गरीबों की समस्याओं का अध्ययन करने के लिए जनवरी 1957 में स्व. बलवंतराय मेहता समिति का गठन किया गया। 24 नवंबर 1957 को इस समिति ने अपना प्रतिवेदन केन्द्र शासन को प्रस्तुत किया। समिति के शिफारिसों को स्वीकृति प्रदान करते हुए इस संस्थाओं का नाम पंचायती राज रखा गया।
ग्रामीण विकास के लिए स्थानीय संस्थाओं की संरचना, अधिकार व कार्यों को संविधान में स्थापना के लिए 1989, 1990 व 1991 में विधेयक प्रस्तुत किया गया, लेकिन कुछ कारणों से अधिनियम पारित नहीं हो सके। 22 दिसम्बर 1992 को लोक सभा व 23 दिसम्बर 1992 को राज्य सभा से पंचायती राज अधिनियम पारित होकर राज्यों में अनुसमर्थन हेतु भेजा गया।