Hindi, asked by Vansh2935, 7 months ago

Grandparents childhood life in hindi paragraph

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Answered by eshagurav
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वे लोग बेहद खुशनसीब होते हैं जिन्हें अपने दादा-दादी और नाना-नानी के साथ रहने का मौका मिलता है और उनके अंदर न सिर्फ अच्छे संस्कार विकसित होते हैं बल्कि उन्हें अपार प्यार और स्नेह भी मिलता है। दादी-दादी घर से सबसे बड़े, आदरणीय और सम्मानीय सदस्य होते हैं, जिनके फैसले परिवार के लिए काफी महत्वपूर्ण होते हैं। वहीं दादा-दादी का अपने नाती-पोतें के साथ एक अलग रिश्ता होता है।

घर के सारे सदस्यों का प्यार एकतरफ और दादा-दादी का प्यार एक तरफ होता है। दादा-दादी न सिर्फ मम्मी-पापा के डांट देने पर अपने प्यार-दुलार से बच्चों का मूड सही कर देते हैं बल्कि उन्हें प्यारी-प्यारी परियों की कहानियां सुनाकर उनके बचपन को और भी ज्यादा हसीन बना देते हैं।

दादा-दादी और पोता-पोती का अटूट बंधन और मजबूत रिश्ते पर कई बार प्रतियोगी परीक्षा अथवा निबंध प्रतियोगिता पर निबंध लिखने के लिए कहा जाता है, इसलिए आज हम आपको अपने इस पोस्ट में अलग-अलग शब्द सीमा पर दादा-दादी के विषय पर निबंध उपलब्ध करवा रहे हैं, जिसका चयन आप अपनी जरूरत के मुताबिक कर सकते हैं –दादा-दादी, नाना-नानी घर से सबसे बड़े एवं सम्मानीय सदस्य होते हैं। इसलिए घर के सभी लोगों के मन में इनके लिए अलग भावना होती है और सब इनका आदर करते हैं। घर से हर काम को इनकी सलाह से पूरा किया जाता है, क्योंकि इनके घर के लिए गए हर फैसले अहम होते हैं, इन्हें दुनिया का काफी अच्छा तुर्जुबा होता है और लोगों की बेहतर पहचान होती है।

इसलिए वे अपने अनुभव और तर्जुबे को अपने बच्चों को पोता – पोता से सांझा करते हैं और उन्हें दुनिया के बारे में मुखातिब करवाते हैं और उन्हें सही सलाह देकर सही मार्ग पर चलने की शिक्षा देते हैं।बचपन में मुझे सारा संसार उल्लासमय और आनन्ददायक लगता था । चिंता की कोई बात नहीं थी । जब कभी मैं चिल्ला पड़ता, कोई-न-कोई मुझे गोद में उठाकर पुचकार लेता । मैं किसी-न-किसी की गोद में होता था ।

मेरा जन्म बड़े अमीर और समृद्ध परिवार में नहीं हुआ था । इसलिए मेरी माँ ही सदा मेरी देखभाल किया करती थी । मुझे किसी नौकर या नर्स के सहारे नहीं छोड़ा गया ।जब मैं छ: वर्ष का हुआ तो मुझे एक छोटे किन्तु अच्छे स्कूल में भर्ती करा दिया गया । जल्दी ही दो-तीन लड़कों से मेरी दोस्ती हो गई । आज तक मुझे बचपन के अपने दोस्तों तथा अध्यापको के चेहरे याद हैं । जब मैं छोटा था, तो मुझे अपने स्कूल के अध्यापक अच्छे नहीं लगते थे क्योंकि कभी-कभी वे मुझे पीट देते थे ।

यह बड़े हर्ष की बात है कि अब पीटने की क्या समाप्त हो गई है । हमें सवेरे ही स्कूल जाना पड़ता था । अन्य अधिकांश बच्चों की ही भांति प्रारभ में मुझे जल्दी उठना और स्कूल जाना अच्छा नहीं लगता था । मेरी मां बड़े प्यार-दुलार से और कभी-कभी डांट कर उठाती ।

मैं बड़े अनमने ढंग से स्कूल के लिए तैयार होता था । लेकिन जब मैं कुछ बड़ा हुआ और स्कूल में दोस्त बन गए तो पढ़ाई में मेरी रुचि बढ़ गई और मैं बड़ी प्रसन्नता से रकूल जाने लगा ।जब मैं केवल दस वर्ष का था, तो मैं पास के गाँव के एक बड़े तालाब पर दोस्तों के साथ निकल पड़ा । चूंकि हमारा यह कार्यक्रम एकाएक बना और दोपहर तक हमें लौट आना था, इसलिए मैंने अपने घर पर कोई सूचना नहीं दी । दैवयोग से हम लोग रात तक लौट पाये ।

मेरे मां-बाप बड़े परेशान थे । दोपहर के बाद उन्होंने हर संभव जगह और गलियों में मेरी बड़ी तलाश की, किन्तु मैं नहीं मिला । अंत में वे बड़ी परेशानी की हालत में घर के दरवाजे पर खड़े सोचने लगे कि अब क्या किया जाये ।

साथ ही वे मेरी राह भी तक रहे थे । इतने में उन्होंने मुझे दूर से आते देख लिया । वे गुरुसे से लाल होकर मेरी ओर लपके और एक हाथ से मेरी दोनों बाँहें पकड़कर मुझे जोर से थप्पड़ मार दिया । मैं रोने लगा । उन्होंने दूसरा हाथ उठाया ही था कि दौड़ती हुई मेरी मां ने आकर पिताजी का उठा हाथ पकड़ लिया ।

मुझे बुरी तरह डांट-फटकार कर छोड़ दिया गया । मेरे पिता बड़े सरल स्वभाव के हैं, लेकिन कभी-कभी वे बड़े कठोर बन जाते हैं लेकिन मां हमेशा मेरे प्रति बड़ी सदय रहतीं हैं । इसीलिए मैं पिता के बजाय मां को अधिक प्यार करता हूँ ।बचपन चिन्ताओं से मुका होता है । बच्चे के कंधे पर न कोई जिम्मेदारी होती है और न उसे अपने कर्त्तव्य की परवाह होती है । बच्चे का काम खाना, पीना, सोना और खेलना होता है । रोटी खाते समय या दूध पीते समरा उन्से कभी यह ख्याल नहीं आता कि रोटी कैसे आई है या उसे लाने में कितनी मेहनत करनी पड़ी है ।

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