Hindi, asked by rupalipandye140, 10 months ago

gratitude is great essay in Hindi 1500 words please give me essay in hindi ​

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Answered by ManjeshKumar
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Answer:

ईश्वर हमारे सृजनकर्त्ता हैं, जीवन की प्रत्येक वस्तु उन्होंने ही हमें दी है, हमारा जीवन भी उनकी ही देन है । प्रतिदिन सुबह जब हम उठते हैं, तो उनकी कृपा से ही एक और नया दिन जीने के लिए मिलता है । पृथ्वी पर मिला जन्म हमारे लिए अनमाेल है; क्योंकि यही एक लोक है जहां हम साधना कर अपने जीवन के अंतिम उद्देश्य की प्राप्ति कर सकते हैं । जब भी कोई व्यक्ति हमारे लिए कुछ करता है, तो उसके प्रति कृतज्ञता लगती है । यद्यपि, हममें से अधिकतर लोग हमें सब कुछ देनेवाले ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त नहीं करते । ईश्वर द्वारा हमारे लिए किए गए सर्व उपकारों के लिए उनके प्रति आभार व्यक्त करने को साधना के अंतर्गत कृतज्ञता व्यक्त करना कहते हैं । अपनी आध्यात्मिक यात्रा के समय साधक के लिए कृतज्ञता भाव में सदैव रहने की क्षमता अति महत्वपूर्ण तथा अत्यंत आवश्यक भाग है ।

वास्तविकता यह है कि अधिकतर लोग यह तो मानते हैं कि ईश्वर सृष्टि के निर्माता हैं; परंतु इसके लिए उन्हें र्इश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने की आवश्यकता ही प्रतीत नहीं होती । उन्हें ऐसा इसलिए लगता है क्योंकि वे सोचते हैं कि उनके जीवन में सामान्यतः जो कुछ भी, अच्छा-बुरा, हो रहा है, वह सब उनकी अपनी इच्छा के कारण हो रहा है । केवल असाधारण परिस्थितियों में, जैसे कोई बच्चा, जो किसी असाध्य व्याधि से ग्रस्त हो और आर्तता से प्रार्थना करने पर चमत्कारिक रूप से वह स्वस्थ हो जाए तब ही हम कृतज्ञता व्यक्त करने की सोचते हैं । यद्यपि यहां पर भी, जिस प्रकार से ईश्वर ने हमारी तत्काल सहायता की, उनकी इस कृपा का स्मरण भी अल्प समय के लिए रहता है । जैसे-जैसे समय बीतता जाता है, व्यक्ति अपनी पुरानी दिनचर्या के अनुसार आचरण करने लगता है और तब तक करता रहता है जब तक कि कोई दूसरी समस्या आकर खडी न हाे जाए जिसके लिए उसे पुनः ईश्वर से कृपा करने हेतु प्रार्थना करनी पडे ।

आध्यात्मिक दृष्टि से सामान्य व्यक्ति के जीवन में, वर्त्तमान समय में ६५ प्रतिशत घटनाएं प्रारब्ध के अनुसार और ३५ प्रतिशत हमारे क्रियमाण कर्म के अनुसार होती हैं । जैसे-जैसे साधना पथ पर हमारी प्रगति होती है, ईश्वर के अस्तित्व का हमें भान होने लगता है और जब हमें उनके अस्तित्व का भान होने लगता है, तब हमें उनकी कृपा का तथा हमारे जीवन में सब कुछ ईश्वर की इच्छा से ही हो रहा है, यह भान भी होने लगता है । यह अवस्था अथवा इस तथ्य का भान तथा उसकी स्तुति ६० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर के उपरांत ही होती है । इसी अनुभव के साथ आध्यात्मिक दृष्टि से वास्तविक रूप में कृतज्ञता का भाव उत्पन्न होता है ।

अध्यात्मशास्त्र के विद्यार्थी तथा साधकों में अच्छी अथवा बुरी, हर परिस्थिति से सीखने की वृत्ति निर्मित होती है । विविध परिस्थितियाें तथा जीवन में घटित होनेवाली घटनाओं में वह अपने दोष अथवा गुण देख पाना सीखने लगता है । इस प्रकार से वह अपने स्वभावदोषों को किस प्रकार घटाना है यह सीखता है । साथ ही, उसे अपने गुण समझ में आने लगते हैं । जीवन की प्रत्येक परिस्थिति में, उसे स्वयं को सुधारने के संकेत मिलते हैं; जो मात्र स्वयं में विद्यमान गुणों को बढाने के लिए ही नहीं अपितु अपने स्वभावदोषों को नए गुणों से परिवर्तित करने के लिए भी होते हैं । उसे भान रहता है कि ईश्वर अच्छी अथवा बुरी, प्रत्येक परिस्थिति में उसमें साधकत्व निर्माण कर रहे हैं । इससे वह ईश्वर के प्रति अच्छी अथवा बुरी, प्रत्येक परिस्थिति में कृतज्ञता व्यक्त करता है क्योंकि उसे लगता है कि ईश्वर का वरदहस्त (कृपा) उसके जीवन में परिस्थितियों की निर्मिति तथा उससे आध्यात्मिक स्तर पर सीख पाने की क्षमता भी प्रदान करते हैं ।

अधिकतर प्रसंगों में कृतज्ञता, आध्यात्मिक मार्गदर्शक अथवा गुरु के प्रति होती है । इस संदर्भ में कृपया ‘गुरु कौन हैं’ यह लेख देखें और वे किस प्रकार साधक का मार्गदर्शन करते हैं ।

जो साधक नहीं है वह भावनाओं में डूबा रहता है । आध्यात्मिक उन्नति करने के लिए साधक को भावना से (सकारात्मक अथवा नकारात्मक) ऊपर उठना पडता है, तभी उसमें भाव उत्पन्न होता है जिससे उसे सर्वत्र ईश्वर के अस्तित्व का भान होने लगता है । कृतज्ञता हममें भाव वृद्धि करने में सहायक होती है ।

Answered by dackpower
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कृतज्ञता महान है निबंध

Explanation:

कृतज्ञता एक ऐसी भावना है जो किसी को महान बनाती है। वास्तव में यह मनुष्य के दिमाग के विकास का सर्वोच्च रूप है। केवल ऋषि और संत कृतज्ञता के बारहमासी दृष्टिकोण में रहते हैं। साधारण पुरुषों और महिलाओं के मन को भोग की इच्छाओं के साथ जोड़ा जाता है, लेकिन महान लोग हमेशा भगवान, ब्रह्मांड और लगभग सभी चीजों के लिए आभार महसूस करते हैं।

आत्मज्ञान सामान्य विचारों से कृतज्ञता के विचारों तक की यात्रा है। अनुभव और ज्ञान प्राप्त करने के बाद, व्यक्ति को जीवन और उसके स्रोत के प्रति आभारी होना चाहिए। कृतज्ञता सभी स्तरों पर सहायक है।

यदि किसी को किसी भी क्षेत्र में उठना है तो यह केवल आभार के माध्यम से संभव है। एक छात्र को अपने शिक्षकों से कृतज्ञता का रवैया अपनाना चाहिए ताकि वे उनसे सर्वश्रेष्ठ शिक्षा प्राप्त कर सकें। यदि किसी खिलाड़ी या खिलाड़ी को अपने खेलों में शीर्ष पर होना है, तो उसे अपने कोच या ट्रेनर का आभारी होना चाहिए। यदि किसी को रिश्तों का सबसे अच्छा आनंद लेना है, तो यह केवल एक दूसरे के प्रति आभार के माध्यम से संभव है।

इसलिए, हम सभी को आध्यात्मिक जीवन के साथ-साथ सामग्री में उत्कृष्टता के लिए कृतज्ञता का रवैया अपनाना चाहिए। कृतज्ञता आपको महान बनाएगी। अपने जीवन में हर एक चीज, पल, रिश्ते और आशीर्वाद के लिए आभारी रहें। अपने माता-पिता, शिक्षक, भगवान और सामान्य रूप से जीवन के लिए आभारी रहें।

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