Gunda khani ka chritr chitran
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वहपचास वर्ष से ऊपर था, तब भी युवकों से अधिक बलिष्ठ और दृढ़ था, चमड़े पर झुर्रियां नहीं पड़ी थीं, वर्षा की झड़ी में, पूस की रातों की छाया में, कड़कती जेठ की धूप में, नंगे शरीर घूमने में वह सुख मानता था। उसकी चढ़ी हुई मूंछ बिच्छू के डंक की तरह, देखने वालों के आंखों में चुभती थीं। उसका सांवला रंग सांप की तरह चिकना और चमकीला था। उसकी नागपुरी धोती का लाल रेशमी किनारा दूर से ही ध्यान आकर्षित करता। कमर में बनारसी सेल्हे का फेंटा, जिसमें सीप की मूंठ का बिछुआ खुंसा रहता था...
अपनी कहानी गुंडे में चर्चित कथाकार जयशंकर प्रसाद ने कुछ इस अंदाज में कहानी के मुख्य पात्र नन्हकू सिंह का परिचय दिया है। 18 वीं सदी के आखिरी हिस्से में जब बनारस में चारो ओर कुव्यवस्था फैली हुई थीं। अंग्रेजों और उनके वफादारों ने पूरे बनारस में आतंक का माहौल बना रखा तब बाबू नन्हकू सिंह किसी की नजर में गुंडा थे तो किसी के लिए रॉबिनहुड की तरह थे। इस नायक की कहानी शनिवार की शाम कालिदास रंगालय में दिखी नाटक गुंडे में। प्रवीण सांस्कृतिक मंच की ओर से मंचित इस नाटक के निर्देशक थे शहर के वरिष्ठ निर्देशक विजयेंद्र कुमार टॉक।