guru ki baat sunkar shishy ka kya jata hai
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wo to shishy ko hi pata hoga uska jata hamara kya jata hai
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किसी कस्बे में एक व्यापारी रहता था। धन-दौलत खूब थी। कस्बे में भरपूर सम्मान था। एक दिन व्यापारी के घर कुछ मेहमान आए। उनमें बनारस के करोड़पति माधोराम भी थे। माधोराम के स्वागत-सत्कार में व्यापारी का पूरा परिवार लग गया। इतना बड़ा सेठ कस्बे में आया था। बहुत से लोग उससे मिलने आए। रात को करोड़पति सेठ के सम्मान में संगीत का कार्यक्रम रखा गया। कस्बे के सितार बजाने वाले कृपाशंकर को बुलाया गया। कृपाशंकर देर तक सितार बजाता रहा, मगर सेठ चुप बैठे रहे। व्यापारी ने समझा-शायद इन्हें सितार सुनना पसंद नहीं। तभी सेठ ने कृपाशंकर से कहा, ‘‘भइया, कब तक सितार के तार ठीक करते रहोगे, अब बजाओ भी।’’
यह सुनकर सभी चौंक गए। कृपाशंकर बोला, ‘‘सेठ जी,मैं तो काफी देर से सितार बजा रहा हूं।’’
‘‘राम, राम, इसे सितार बजाना कहते हो। इससे अच्छा तो बनारस का कुत्ता भी सुर में भौंक सकता है। कभी तुमने बनारस के सिद्धनाथ का सितार सुना है? जरा सुनो तो समझ जाओगे। तुम्हें तो अभी सितार ढंग से पकडऩा भी नहीं आता।’’ सेठ जी बोले।
कृपाशंकर चुप रह गया। इतने बड़े सेठ से कहे भी क्या। उसने निश्चय कर लिया कि इस अपमान का बदला लेगा। जैसे भी बनेगा, सिद्धनाथ को नीचा दिखाएगा।
दूसरे ही दिन वह बनारस की ओर चल पड़ा। वहां उसने सिद्धनाथ का मकान ढूंढा। सिद्धनाथ राजा के दरबारी सितार वादक थे। काफी मुश्किल के बाद भेंट हुई। कृपाशंकर बड़ा धूर्त था। उसने सिद्धनाथ के पैर पकड़ लिए। बोला, ‘‘आचार्य, मैं आप से सितार सीखना चाहता हूं।’’
सिद्धनाथ ने कृपाशंकर को सिर से पैर तक देखा। बोले, ‘‘मैं तुम्हें शिष्य नहीं बनाऊंगा।’’
कृपाशंकर को क्रोध तो आया, मगर चुप रहा। सिद्धनाथ की पत्नी की खुशामद करने लगा। उसे कृपाशंकर पर दया आ गई। किसी तरह उसने पति को मना लिया।
सिद्धनाथ सज्जन थे। उन्होंने कृपाशंकर को शिष्य बनाया, तो सारा स्नेह उंडेल दिया। धीरे-धीरे उसे सितार की सारी विद्या सीखा दी। कृपाशंकर इसी अवसर की तलाश में था। सब कुछ सीख कर वह सिद्धनाथ से बोला, ‘‘आचार्य, आप काफी बूढ़े हो गए हैं। अपनी जगह मुझे राज दरबार में रखवा दीजिए।’’
सिद्धनाथ ने बात मान ली। राजा से कहकर, कृपाशंकर को दरबार में रखवा दिया। दरबार में नौकरी पाते ही सिद्धनाथ तेवर बदलने लगा। अवसर का लाभ उठाकर उसने राजा से कहा, ‘‘राजन, आप मेरे गुरु को जितनी तनख्वाह देते हैं, उतनी ही मुझे भी दें। मैं भी संगीत में उनके समान ही निपुण हूं।’’
सुनकर राजा चौंके, ‘‘बोले, मैं परीक्षा लेकर देखूंगा। अगर तुम सितार विद्या में उन्हीं की तरह निपुण पाए गए तो तुम्हें भी उतनी ही तनख्वाह मिलेगी।’’
सिद्धनाथ ने यह बात सुनी। वह डर गए। उन्हें लगा, ‘‘बुढ़ापे में हाथ कांप जाते हैं। कृपाशंकर जवान है। मैंने अपनी सारी विद्या उसे सिखा दी है। वह जरूर मुझे हरा देगा।’’
शिष्य की चुनौती से गुरु के सिर पर चिंता सवार हो गई। खाना-पीना भी छूट गया। पत्नी परेशान। पत्नी मगर करे क्या? उसे स्वयं भी क्रोध आ रहा था। उसी की जिद पर तो कृपाशंकर को शिष्य बनाया गया था।
शाम का समय था। सिद्धनाथ एक पेड़ के नीचे बैठे चिंता में डूबे थे। तभी गंधर्वराज प्रकट हुए। पूछा, ‘‘आचार्य, क्या दुख है? आपने जीवन भर संगीत की साधना की है। मैं प्रसन्न हूं। बताइए, आपके लिए क्या करूं।’’
गंधर्वराज को देख, सिद्धनाथ ने प्रणाम किया। फिर अपनी समस्या बताई। गंधर्वराज मुस्कुराए, ‘‘चिंता न करो। दरबार में जाकर सितार बजाओ। कृपाशंकर कभी नहीं जीतेगा।’’
इसके बाद गंधर्वराज ने सिद्धनाथ को तीन गोलियां दीं। कुछ समझा भी दिया। ठीक समय पर दोनों दरबार में पहुंचे। राजा का आदेश पाकर सितार बजाने लगे। सिद्धनाथ बूढ़े थे। उंगलियां उतनी तेजी से चल नहीं पा रही थीं। कृपाशंकर के मन में उत्साह था। वह पूरी तन्मयता से सितार बजा रहा था। सभी को लगा आज गुरु अपने शिष्य से हार जाएंगे।
तभी चमत्कार हुआ। सिद्धनाथ ने सितार का एक तार तोड़ दिया। सितार अभी भी सात स्वरों में बज रहा था। लोगों ने तालियां पीटीं। यह देखकर कृपाशंकर ने भी अपने सितार का तार तोड़ दिया मगर तार के टूटते ही उसका एक स्वर गायब हो गया। इसी तरह सिद्धनाथ ने सितार के सातों तार तोड़ दिए। गंधर्वराज का वरदान, उनका सितार फिर भी सातों स्वरों में बजता रहा। उधर कृपाशंकर भी तार तोड़ता गया और अंत में वह सितार की लकड़ी को पीटने लगा।
यह देख दरबारी हंसने लगे। गुरु की जीत हो गई। तभी सिद्धनाथ ने एक गोली आसमान में उछाली। तुरन्त आसमान सतरंगी हो गया। दूसरी गोली फैंकने पर आकाश में सितार की ध्वनि फूट पड़ी और तीसरी गोली के फैंकते ही घुंघरूओं की खनक से आकाश भर गया। लगा, जैसे नाच हो रहा हो। यह सारा चमत्कार गंधर्वराज ने ही किया था। सभी लोग सिद्धनाथ की विद्या को सराहने लगे। यह देख कृपाशंकर डरा। वह वहां से भागने लगा, मगर राजा के सेवकों ने उसे पकड़ लिया।
राजा ने कहा, ‘‘बोल मूर्ख गुरु को अपमानित करने के लिए तुझे क्या दंड दिया जाए?’’
वह डर से कांप रहा था। हाथ जोड़कर राजा से क्षमा मांगने लगा। सिद्धनाथ को उस पर दया आ गई। राजा से कहकर उसे क्षमा करवा दिया। किंतु राजा ने आज्ञा दी, ‘‘तुम तुरन्त यह राज्य छोड़कर चले जाओ।’’
कृपाशंकर जाने लगा, तो आकाशवाणी हुई, ‘‘इसने संगीत का अपमान किया है। इसलिए जो सीखा है, वह भूल जाएगा।’’
सचमुच कृपाशंकर सारी विद्या भूल गया। वह पहले जैसा था, वैसा ही बनकर अपने कस्बे में लौट आया।