Hindi, asked by makkasariya, 1 year ago

guru nank dev pr lekh

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Answered by vijay160658
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In English

Guru Nanak Dev was the first Guru and the founder of 'Sikh Dharma'. He was a great benefactor and great reformer who inspired worldly ignorance to assimilate spiritual power.

Guru Nanak's statement about worldly ignorance is :

" Rain Gwai slept Cai , Divsu Gwaya Khay. As soon as the diamond is born , the caudal will be replaced. "

In their view, God is omnipresent. They were a staunch opponent of idol worship. Guru Nanak Dev was born in 1469 AD in the village of Talwandi in the Lahore district of Punjab, which is currently known as 'Nankana Sahib' in western Punjab (Pakistan).

His father Sri Kalunchand's altar used to work as a patwari in Talwandi and Mother Smt. Trupta Devi was a devout and sadhvi lady. Sadhvi Mata's religious rituals also fall on child Nanak. You were from a very young age. Your nature was reflective and you were unaccompanied.

Your mind was more interested in the company of saint-saints and scholars than schooling. Balk Nanak earned knowledge of Sanskrit, Arabic and Persian languages ​​by staying at home. When his father saw the spirit of worldly emptiness in his son, he entrusted the task of animal husbandry with the aim of attracting him to materialism. But even after this, most of God Dev used to spend most of his time in devotion and sadhana

In Hindi

गुरु नानक देव सिक्खों के प्रथम गुरु व ‘सिक्ख धर्म’ के संस्थापक थे । वे एक महापुरुष व महान धर्म प्रर्वतक थे जिन्होंने विश्व से सांसारिक अज्ञानता को दूर कर आध्यात्मिक शक्ति को आत्मसात् करने हेतु प्रेरित किया ।

सांसारिक अज्ञानता के प्रति गुरु नानक देव का कथन है:

” रैन गवाई सोई कै, दिवसु गवाया खाय । हीरे जैसा जन्मु है, कौड़ी बदले जाय । ”

उनकी दृष्टि में ईश्वर सर्वव्यापी है । वे मूर्तिपूजा के कट्‌टर विरोधी थे । गुरु नानक देव का जन्म सन् 1469 ई॰ को पंजाब के लाहौर जिले के तलवंडी नामक ग्राम में हुआ था जो वर्तमान में पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान) में ‘ननकाना साहब’ के नाम से जाना जाता है ।

उनके पिता श्री कालूचंद वेदी तलवंडी में पटवारी का कार्य करते थे तथा माता श्रीमती तृप्ता देवी एक धर्मपरायण व साध्वी महिला थीं । साध्वी माता की धर्मपरायणता के संस्कार बालक नानक पर भी पड़े । आप बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे । आपके स्वभाव में चिंतनशीलता थी तथा आप एकांतप्रिय थे ।

आपका मन स्कूली शिक्षा की अपेक्षा साधु-संतों व विद्‌वानों की संगति में अधिक रमता था । बालक नानक ने संस्कृत, अरबी व फारसी भाषा का ज्ञान घर पर रहकर ही अर्जित किया । इनके पिता ने जब पुत्र में सांसारिक विरक्ति का भाव देखा तो उन्हें पुन: भौतिकता की ओर आसक्त करने के उद्‌देश्य से पशुपालन का कार्य सौंपा । परंतु इसके पश्चात् भी नानक देव का अधिकांश समय ईश्वर भक्ति और साधना में व्यतीत होता था 



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