guru shishya story in short
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एक गुरु और उनका शिष्य बहुत सुन्दर खिलौने बनाते और दिन भर बनाये खिलौनों को शाम के समय बाजार जाकर बेच आते. गुरु के बनाये खिलौनों की अपेक्षा शिष्य द्वारा बनाये गये खिलौने अधिक दाम में बिकते थे. इसके बाद भी गुरु, शिष्य को रोजाना काम में अधिक मन लगाने और अधिक सीखने की शिक्षा देते थे.
वे उससे कहते की काम में और मेहनत करो, हाथ में सफाई लाओ.
शिष्य सोचता की मैं गुरु से अच्छे खिलौने बनाता हूँ, शायद उन्हें मुझसे ईर्ष्या है. आख़िरकार उसने एक दिन गुरु से कह ही दिया, ” आप मेरे गुरु है. मैं आपका सम्मान भी करता हूँ. मेरे बनाये खिलौने आपसे अधिक कीमत में बिकते है.
गुरु जी ने बिना किसी उत्तेजना के शिष्य की बात का उत्तर दिया, ” बेटा, आज से बीस साल पहले मुझसे भी ऐसी ही भूल हुई थी, तब मेरे गुरु के खिलौने भी मुझसे कम दाम में बिकते थे. वे भी मुझसे अपना काम और कला को लगातार सुधारने के लिए कहा करते थे. मैं उन पर बिगड़ गया था और फिर अपनी कला का विकास नहीं कर पाया. अब मैं नहीं चाहता की तुम्हारे साथ भी वही हो.
यह सुनते ही शिष्य को अपनी भूल का अहसास हुआ और वह जी – जान से अपने हुनर को बढ़ाने में लग गया.