Hindi, asked by 22march2008, 2 months ago

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Answered by Rizakhan678540
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Explanation:

Samudra tat ki sair.....

समुद्र तट पर सैर करना स्वास्थ्य के लिए उत्तम सिद्ध है।इस सच्चाई को सीने में संजोए मेरे अंदर भी जुनून जागा कि मैं क्यों नहीं ? जब तमाम लोग इसका पालन करने में दृढ़निष्ठ हैं तो मुझे अपनाने में इतना विलंब कैसा? मुंबई महानगरी को सलाम जहॉं पर बसने वाले लोग इसका आनंद उठा सकते हैं।और मेरा तो घर समुद्र तट पर ही है।और तो और किसी वाहन या यातायात संबंधी परेशानी से जूझने की भी आवश्यकता नहीं।पर ये सोचना सरासर गलत साबित होता है।इसका हरज़ाना हमें भुगतना पड़ता है।

बिल्डिंग के गेट के बाहर पैर रखो, लेन पर क्या आलम रहता है? ऑटो गाड़ियों का रेला लगा रहता है।गाड़ियों की कतारें ही कतारें।छुट्टियों में तो कहना ही क्या ? लोगों को देखो ,सैर के लिए कितनी ज़द्दोजहद उठानी पड़ती है।सुबह पहले तो अपनी नींद से, फिर अपने को सम्हालते, बच्चों की उंगली पकड़े, बुज़ुर्गों को थामते बचाते वरना ऑटो रिक्शा वाले अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ते।उन पर कोई असर नहीं पड़ता।खुद ही बचना है तो बचो।अपना आगे का पहिया कितनी ही कम जगह पर अड़ाने से नहीं चूकते।और यदि ऐसे समय पर हमारे घर पर किसी मेहमान का आना हो जाए तो उन्हें चेतावनी तौर पर इस बात से पूरी तरह से अवगत कराना पड़ता है, लेन में प्रवेश होते समय क्या -क्या कहना होगा या फिर छुट्टी के दिन मिलने मिलाने की इच्छा ही मत रखो।आज रास्ता ही बंद है।प्रवेश वर्जित। कभी खुद भी कहीं बाहर से ऐसे मौके पर आओ तो अपने घर तक पहुँचने के लिए भी कितनी औपचारिकताओं के बीच से गुज़रना पड़ता है, ये हम ही जानते हैं।खैर यह तो अपना बयॉं था।

हॉं तो मैं कहॉं थी , अरे मैं वहीं थी।कुछ ही कदम आगे बढ़ा पाई थी व निकलने का रास्ता खोज रही थी।लोग बेचारे कहॉं- कहॉं से अकेले या मित्र परिवार के साथ और कुछ अपने कुत्तों के साथ समुद्र तट की ओर बढ़ते नज़र आ रहे थे।मन ही मन मानो गाते ‘कदम कदम बढ़ाए जा खुशी के गति गाए जा।’रूकने व थमने में कामयाबी नहीं।

बीच पर नज़ारे ही नज़ारे देखने को मिलते हैं।सभी अपने क्रियाकलापों में लगे पड़े हैं।मुंबई की आम जनता ने वैसे भी यहॉं की ज़िंदगी की भागने की शैली से ,अपना हमेशा- हमेशा का नाता ही जोड़ लिया है।सुबह भागो, दिन भर भागते रहो।वैसे रेत पर चलना कोई आसान काम नहीं है।काफ़ी मेहनत और ऊर्जा की ख़पत होती है।कुछ बुज़ुर्ग लोग खाली कुर्सी को ढ़ूँढ़ते नज़र आते हैं।बेचारा नारियल वाला कुछ कुर्सियों का शायद इसी के लिए प्रबंध करके रखता है कि इसके बहाने उसके नारियल पानी की अच्छी बिक्री हो जाएगी।आखिर बेचने के हथकंडे सीखने पड़ते हैं।स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ने के कारण लोग कड़वे से कड़वे रस पीने से भी नहीं हिचकते।जब वे कड़वी- कड़वी बातें हज़म कर ले रहे हैं तो इसमें कैसी आपत्ति।फिर जूस निकालने की मशक्कत वाली प्रक्रिया से भी बचाव।

एक ओर नज़र पड़ती है रिटायर्ड लोगों का वर्ग, जो अपने हर ओर के क्षेत्र से रिटायर्ड होने लगते हैं।उनके पास समय का अभाव नहीं पर लोगों का अभाव है।समय बिताना उनकी मजबूरी और अब एकमात्र काम रह गया है।

कुछ कानों में इयर फोन डाले अपने लक्ष्य की ओर बढ़े जा रहे हैं।कानों में उंगली देने के समान उन्हें किसी से सरोकार नहीं।चार पॉंच स्त्रियों का जत्था जिनके पास बातों का बहुत बड़ा स्टॉक़ ,साथ ही फिगर बनाने के मक़सद पर भी तवज्जो दे रहीं।बातों में इतनी मशगूल कि मंज़िल आ गर्इ..बातें ख़त्म न हो पाई।साथी से बिछड़ने पर आखिर कहना पड़ा, चलो मैं जाकर फोन करती हूँ।

Answered by Anonymous
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Answer:

While you might think that college gymnasts might train almost just as much as Olympic and elite gymnasts do, the truth of the matter is that while most elite gymnasts train around 40 hours per week, college gymnasts only train 20 hours a week.

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