Gyan ka aacha strot pustak
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फ्रांसिस बेकान ने ’ऑफ स्टेडीस’ में कहा है-
‘some books are to be tasted, others to be swallowed and some few to be chewed & digested’
निश्चित ही आज के परिपेक्ष में यह कथन पूर्णत: सत्य प्रतीत होता है। आज यहाँ हमारे सामने पुस्तकों का अनन्त सागर विद्यमान है, यह ज्ञात करना की कौन सी पुस्तक कितनी महत्त्वापयोगी है अत्यंत ही कठिन है। परन्तु निश्चित ही यह सभी पुस्तकें हमारे लिए कोई-न-कोई संदेश अवश्य प्रदान करती हैं।
सवाल उठता है कि ज्ञान क्या है? ये जड़ हैं या इनकी प्रकृति ही जड़ है जबकि मानव सृजनशील व चिन्तनशील है। जिस प्रकार पत्थर स्वंय में कुछ भी नहीं, उसको उपयोग करने वाला अपनी बुद्धि व कौशल से उसका उपयोग करता है, यह उपयोग ही उसके ज्ञान का मानक है। और निश्चित ही यह ज्ञान उसे अपनी पुस्तकों से ही प्राप्त होता है।
यदि हम आदिम काल पर दृष्टि डाले, तो यह तथ्य हमारे सामने आते हैं कि चीनी, मिश्र, अमेरिकन (इनकास व एजेटेक) व अन्य सभी सभ्यताओं के पुरातत्व अवशेषों में इनकी लिखित रचनाएँ ही हमारे लिए वह उपकरण सिद्ध हुई है जिसके माध्यम से आज हमें इन सभ्यताओं की गहन जानकारी प्राप्त है। यह स्पष्ट करता है कि पुस्तकों का महत्त्व आदिम काल में भी प्रमाणित है।