Hindi, asked by aabidahmed, 8 months ago

H
96. हिंसा का विशेषण है।
(a) हिंसक (6) अहिंसक
(c) भलाई
() नीचता​

Answers

Answered by commercegirl09
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Answer:

a is the right answer of your question

Answered by SUPER30of2020
0

Answer:

हिंसा क्या है? इस प्रश्न के समाधान में कहा जा सकता है कि किसी प्राणी को प्राण-विहीन करना, दूसरे से प्राण विहीन करवाना या किसी दूसरे व्यक्ति के द्वारा किसी प्राणी को प्राण-विहीन करते हुए देखकर उसका अनुमोदन करना, किसी प्राणी पर शासन करना, दास बनाना, किसी भी प्रकार की पीड़ा देना, सताना या अशांत करना भी हिंसा है। गाँधीजी ने हिंसा की अवधारणा को और अधिक स्पष्ट करते हुए कहा है कि ‘कुविचार हिंसा है, उतावली हिंसा है, मिथ्या भाषण हिंसा है, द्वेष हिंसा है, किसी का बुरा चाहना हिंसा है। जगत् के लिए जो आवश्यक वस्तु है, उस पर कब्जा रखना भी हिंसा है।’ गाँधीजी के अनुसार अहम् या अहमत्व पर आधारित जितनी भी मानुषिक क्रियाएँ है। वे सभी हिंसा ही है। जैसे-स्वार्थ, प्रभुता की भावना, जातिगत विद्वेष, असन्तुलित एवं असंयमित भोगवृत्ति, विशुद्ध भौतिकता की पूजा, अपने व्यक्तिगत और वर्गगत स्वार्थों का अंधसाधन, शस्त्र और शक्ति के आधार पर अपनी कामनाओं की संतृप्ति करना, अपने अधिकार को कायम रखने के लिए बल का प्रयोग तथा अन्य व्यक्तियों के अधिकारों का अपहरण आदि। जैन ग्रंथ आचारांग के अनुसार किसी प्राणी की स्वतंत्रता का किसी भी रूप में हनन भी हिंसा है। इसमें प्राणी या जीव को मनुष्य, पशु, पक्षी और कीट-पतंगों के अर्थ में ही नहीं, अपितु व्यापक अर्थ में लिया गया है, जिसमें उन जीवों का भी समावेश हो जाता है, जिन्हें सामान्य जन जड़ या अजीव कहते है। आचारांग में सभी प्राणियों को छ: वर्गों में रखा गया है। ये वर्ग है।-पृथ्वीकाय जीव, जलकाय जीव, अग्निकाय जीव, वायुकाय जीव, वनस्पतिकाय जीव और त्रसकाय जीव।

तत्त्वार्थसूत्र में उमास्वाति ने हिंसा को परिभाषित करते हुए कहा है-प्रमाद से जो प्राणघात होता है, वही हिंसा है। प्रश्न उत्पन्न होता है कि प्राण क्या है? इस प्रश्न के उत्तर में भगवती सूत्र में कहा गया है कि जीव आभ्यन्तर श्वासोच्छवास तथा बाह्य श्वासोच्छवास लेने के कारण प्राण कहा जाता है। जिस शक्ति से हम जीव का किसी-न-किसी रूप में जीवन देखते हैं, वह शक्ति प्राण है, जिनके अभाव में शरीर प्राणहीन हो जाता है।

हिंसा के रूप

हिंसा के दो रूप है।-भाव हिंसा और द्रव्य हिंसा। मन में कषाय (क्रोध, मान, माया, लोभ) का जाग्रत होना भाव हिंसा है और मन के भाव को वचन और क्रिया का रूप देना द्रव्य हिंसा कहलाती है। अर्थात् मन, वचन और काय के दुष्प्रयोग से जो प्राणहनन या दुष्क्रिया होती है, वही हिंसा है।

हिंसा के प्रकार

हिंसा के दो प्रकार है-1. अर्थ हिंसा, 2. अनर्थ हिंसा।

अर्थ हिंसा-

जो व्यक्ति अपने लिए, अपनी जाति, परिवार, मित्र, घर, देवता आदि के लिए त्रस एवं स्थावर प्राणियों का स्वयं घात करता है, दूसरों से करवाता है, घात करते हुए को अच्छा समझता है, वह अर्थ हिंसा है।

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