Hindi, asked by dksharmabegusarai, 8 months ago

हों अकाल के ज्यों अवतार।
एक अकेला ताँगा था दूरी पर
कोचवान की काली-सी चाबुक के बल पर वो बढ़ता था
गरमी की दोपहरी में
तपे हुए नभ के नीचे
काली सड़कें तारकोल की
अंगारे-सी जली पड़ी थीं
छाँह जली थी पेड़ों की भी
पत्ते झुलस गए थे
नंगे-नगे दीर्घकाय, कंकालों-से वृक्ष खड़े थे
घूम-घूम जो बलखाती थी सर्प सरीखी
बेदर्दी से पड़ती थी दुबले घोड़े की गरम पीठ पर
भाग रहा वह तारकोल की जली
अँगीठी के ऊपर से।
कभी एक ग्रामीण धरे कंधे पर लाठी
सुख-दुख
की मोटी-सी गठरी
लिए पीठ पर भारी
जूते फटे हुए
जिनमें से थी झाँक रही गाँवों की आत्मा​

Answers

Answered by annuyadav786sm
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Answer:

chhhpdiueaopptaug dkkfddgjkkdaxujzcfk is

guijuu

Answered by balkarparamjeet
0

Answer:

kisan। hai bhai ya bahen

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