हे भगवान ! तब के लिए ! विपद के लिए। इतना आयोजन। परमपिता की
इच्छा के विरूद्ध इतना साहस। पिताजी क्या भीख न मिलेगी? क्या कोई हिन्दू
भू पृष्ठ पर बचा न रह जायेगा, जो ब्राहमण को दो मुट्ठी अन्न दे सके? यह
असम्भव है। फेर दीजिए पिताजी, मैं काँप रही हूँ-इसकी चमक आँखों को
अन्धा बना रही है।
2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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उत्तर-
(बे) रेखांकित अंश की व्याख्या – जयशंकर प्रसाद जी कहते हैं कि जब ममता ने स्वर्ण-आभूषणों से भरा हुआ थाल देखा तब वह हतप्रभ रह गयी। वह आश्चर्य प्रकट करती हुई अपने पिता से कहती है कि आप विपत्ति के लिए इतने धन का संग्रह क्यों कर रहे हैं। भगवान की इच्छा के विरुद्ध आपने यह बहुत बड़ा दुस्साहस किया है। हम ब्राह्मण हैं। क्या इस पृथ्वी पर ऐसा कोई हिन्दू व्यक्ति न बचेगा जो किसी ब्राह्मण की क्षुधा को शान्त करने के लिए थोड़ा-सा अन्न भिक्षा के रूप में भी नहीं देगा। पिताजी! निश्चित ही यह बात असम्भव है कि पृथ्वी पर कोई हिन्दू (सधर्मी) व्यक्ति न मिले और ब्राह्मण को भिक्षा भी न मिले।
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