हे भगवान ! तब के लिए ! विपद के लिए। इतना आयोजन। परमपिता कीइच्छा के विरूद्ध इतना साहस। पिताजी क्या भीख न मिलेगी? क्या कोई हिन्दूभू पृष्ठ पर बचा न रह जायेगा, जो ब्राहमण को दो मुट्ठी अन्न दे सके? यहअसम्भव है। फेर दीजिए पिताजी, मैं काँप रही हूँ-इसकी चमक आँखों कोअन्धा बना रही है।2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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