है। चड़े हिमालय की चोटी पर फिर भी ऊपर चढ़ना है। हमें हिमालय के शिखरों पर नया हिमालय गढ़ना है। ऊँचा है हौसला हमारा, विंध्याचल हिमवानों से। ऊंची है कल्पना हमारी, अंदर के अरमानों से ऊँचा बलिदान हमारा जीवन के अरमानों से हिम्मत की छाती ऊँची है, पर्वत की चट्टानों से चट्टानों से टक्कर ले लेकर, नित आगे बढ़ना है। चढ़े हिमालय की चोटी पर, फिर भी ऊपर चढ़ना है। अंत पहाड़ों का है, लेकिन अभियानों का अंत कहाँ? संघर्षों का अंत कहाँ है? संधानों का अंत कहाँ? अंत सिद्धियों का है, लेकिन निर्माणों का अंत कहाँ ? अंत देह का हो सकता है, पर प्राणों का अंत कहाँ?bhawarth
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प्रस्तुत पंक्तियों का भावार्थ यह है कि हमें हिमालय की भांति अपने जीवन में तरक्की करनी है हमने अपने जीवन में जितनी भी तरक्की की है हमें और भी उससे भी ज्यादा तरक्की करनी है। हमारे हौसले हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों से भी ऊपर हैं हमने जो कार्य ठान लिया है वह हम पूरा करके रहेंगे। हमने कई उपलब्धियां पाने के लिए अनेकों बलिदान दिए हैं मतलब यह है कि हमें महान बनने के लिए कई चीजों को छोड़ना पड़ेगा जो कि हमारे रास्ते में बाधा उत्पन्न करेंगे। पर्वतों की चट्टानों के भांति हमारी सफलता के मध्य आने वाली संपूर्ण कठिनाइयों को पूरे हौसले के साथ टक्कर देख कर उसे विजय प्राप्त करनी है और अपने मंजिल तक पहुंचना है, हमें हिमालय की चोटियों के समान तरक्की करनी है। हमारे हौसले से तरक्की में आने वाली मुसीबतों का अंत होता है ना कि हमारे हौसले और जज्बे का अंतर होता है, जो एक लक्ष्य प्राप्त करने के बाद दूसरा लक्ष्य बना लेता है उनके संघर्षों का कभी अंत नहीं होता। अंत में सामान के आलस्य का होता है जो तरक्की करते हैं उनकी सफलता का कभी अंत नहीं होता। अंतर किसी के शरीर का हो सकता है उसकी आत्मा यानी उसकी उपलब्धि और अच्छे कार्यों का कभी अंत नहीं होता।