English, asked by ayushchaurasiya57132, 7 months ago

हिगाशी
ति
क्वाटम सध्या सात करती है​

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Answered by dollywalia5960
0

Answer:

witch countries get effected by international toursim?

Answered by narindersysteam
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Explanation:

Literature Jump to: navigation, search कवि: रामधारी सिंह "दिनकर"

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'आह, बुद्धि कहती कि ठीक था, जो कुछ किया, परन्तु हृदय,

मुझसे कर विद्रोह तुम्हारी मना रहा, जाने क्यों, जय?

अनायास गुण-शील तुम्हारे, मन में उगते आते हैं,

भीतर किसी अश्रु-गंगा में मुझे बोर नहलाते हैं।

'जाओ, जाओ कर्ण! मुझे बिलकुल असंग हो जाने दो,

बैठ किसी एकान्त कुंज में मन को स्वस्थ बनाने दो।

भय है, तुम्हें निराश देखकर छाती कहीं न फट जाये,

फिरा न लूँ अभिशाप, पिघलकर वाणी नहीं उलट जाये।'

इस प्रकार कह परशुराम ने फिरा लिया आनन अपना,

जहाँ मिला था, वहीं कर्ण का बिखर गया प्यारा सपना।

छूकर उनका चरण कर्ण ने अर्घ्य अश्रु का दान किया,

और उन्हें जी-भर निहार कर मंद-मंद प्रस्थान किया।

परशुधर के चरण की धूलि लेकर,

उन्हें, अपने हृदय की भक्ति देकर,

निराशा सेविकल, टूटा हुआ-सा,

किसी गिरि-श्रृंगा से छूटा हुआ-सा,

चला खोया हुआ-सा कर्ण मन में,

कि जैसे चाँद चलता हो गगन में।

रश्मिरथी / तृतीय सर्ग / भाग 1 From Hindi Literature Jump to: navigation, search कवि: रामधारी सिंह "दिनकर"

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हो गया पूर्ण अज्ञात वास, पाडंव लौटे वन से सहास,

पावक में कनक-सदृश तप कर, वीरत्व लिए कुछ और प्रखर,

नस-नस में तेज-प्रवाह लिये,

कुछ और नया उत्साह लिये।

सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है,

शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते,

विघ्नों को गले लगाते हैं,

काँटों में राह बनाते हैं।

मुख से न कभी उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं,

जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग-निरत नित रहते हैं,

शूलों का मूल नसाने को,

बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को।

है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में?

खम ठोंक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़।

मानव जब जोर लगाता है,

पत्थर पानी बन जाता है।

गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर,

मेंहदी में जैसे लाली हो, वर्तिका-बीच उजियाली हो।

बत्ती जो नहीं जलाता है

रोशनी नहीं वह पाता है।

पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड, झरती रस की धारा अखण्ड,

मेंहदी जब सहती है प्रहार, बनती ललनाओं का सिंगार।

जब फूल पिरोये जाते हैं,

हम उनको गले लगाते हैं।

रश्मिरथी / तृतीय सर्ग / भाग 2 From Hindi Literature Jump to: navigation, search कवि: रामधारी सिंह "दिनकर"

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वसुधा का नेता कौन हुआ? भूखण्ड-विजेता कौन हुआ?

अतुलित यश क्रेता कौन हुआ? नव-धर्म प्रणेता कौन हुआ?

जिसने न कभी आराम किया,

विघ्नों में रहकर नाम किया।

जब विघ्न सामने आते हैं, सोते से हमें जगाते हैं,

मन को मरोड़ते हैं पल-पल, तन को झँझोरते हैं पल-पल।

सत्पथ की ओर लगाकर ही,

जाते हैं हमें जगाकर ही।

वाटिका और वन एक नहीं, आराम और रण एक नहीं।

वर्षा, अंधड़, आतप अखंड, पौरुष के हैं साधन प्रचण्ड।

वन में प्रसून तो खिलते हैं,

बागों में शाल न मिलते हैं।

कंकरियाँ जिनकी सेज सुघर, छाया देता केवल अम्बर,

विपदाएँ दूध पिलाती हैं, लोरी आँधियाँ सुनाती हैं।

जो लाक्षा-गृह में जलते हैं,

वे ही शूरमा निकलते हैं।

बढ़कर विपत्तियों पर छा जा, मेरे किशोर! मेरे ताजा!

जीवन का रस छन जाने दे, तन को पत्थर बन जाने दे।

तू स्वयं तेज भयकारी है,

क्या कर सकती चिनगारी है?

वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,

सह धूप-घाम, पानी-पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर।

सौभाग्य न सब दिन सोता है,

देखें, आगे क्या होता है।

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