Hindi, asked by ranveerchopra, 2 days ago

हिगवला के कवि कोंन है ।​

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Answered by itzmecutejennei
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Answer:

हेगेल की प्रमुख उपलब्धि उनके आदर्शवाद की विशिष्ट अभिव्यक्ति का विकास थी, जिसे कभी-कभी पूर्ण आदर्शवाद कहा जाता है, [32] जिसमें उदाहरण के लिए, मन और प्रकृति और विषय और वस्तु के द्वंद्वों को दूर किया जाता है। उनकी आत्मा का दर्शन वैचारिक रूप से मनोविज्ञान, राज्य, इतिहास, कला, धर्म और दर्शन को एकीकृत करता है। विशेष रूप से 20 वीं सदी के फ्रांस में मास्टर-दास की बोली का उनका खाता अत्यधिक प्रभावशाली रहा है। [33] विशेष महत्व की उनकी आत्मा की अवधारणा है (तार्किक रूप से ऐतिहासिक अभिव्यक्ति और "उदात्तीकरण" के रूप में "गेस्ट", जिसे कभी-कभी "अनुवाद" भी कहा जाता है) (प्रतीत होता है या विरोधाभासी कारकों के विरोध के उन्मूलन या कमी के बिना Aufhebung, एकीकरण): उदाहरणों में शामिल हैं प्रकृति और स्वतंत्रता के बीच स्पष्ट विरोध और अनुकरण और पारगमन के बीच। हेगेल को 20 वीं सदी में थीसिस, एंटीथिसिस, सिंथेसिस ट्रायड के प्रवर्तक के रूप में देखा गया है, [34] लेकिन यह एक स्पष्ट वाक्यांश के रूप में जोहान गोटलिब फिच के साथ उत्पन्न हुआ। [35]

Answered by ayangoswami2004
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हीगल का जीवन परिचय

जर्मनी के प्रसिद्ध आदर्शवादी दार्शनिक हीगल का जन्म 1770 ई0 में स्टटगार्ट नामक नगर में हुआ। हीगल के पिता वुर्टमवर्ग राज्य में एक सरकारी कर्मचारी थे। वे हीगल को धार्मिक शिक्षा दिलाना चाहते थे। 18 वर्ष की आयु तक हीगल ने स्टटगार्ट के ‘ग्रामर स्कूल’ में शिक्षा ग्रहण की। 1788 ई0 में उसने ट्यूबिनजन के विश्वविद्यालय में धर्मशास्त्र पढ़ना शुरू किया और 1790 में दर्शनशास्त्र के डॉक्टर की उपाधि प्राप्त की। यहाँ पर उसने कठोर परिश्रम किया। लेकिन धार्मिक विषयों की अपेक्षा उसने यूनानी साहित्य में रुचि दिखाई।

वह दर्शनशास्त्र का प्रोफेसर बनना चाहता था। 1793 में उसे ‘धर्मशास्त्र का प्रमाण-पत्र‘ प्राप्त किया। इस प्रमाण-पत्र में उसे दर्शनशास्त्र का कम ज्ञान होने की बात अंकित थी। यहाँ पर उसका परिचय कवि होल्डरलिन तथा प्रसिद्ध दार्शनिक शेलिंग से हुआ। उनके प्रभाव से उसने यूनानी दर्शन का अध्ययन किया। उसने प्लेटो के तत्त्वशास्त्र तथा यूनानी नगर राज्य की प्रशंसा करनी शुरू कर दी। उसके जर्मनी के विभाजन के कारण यूनानी नगर राज्यों पर विचार करना शुरू कर दिया। उसने यूनानी चिन्तकों द्वारा उपेक्षित स्वतन्त्रता के विचार को आगे बढ़ाया। 1796 में उसने 'The Positivity of the Christian Religion' नामक लेख में जेसस के सरल धर्म का समर्थन किया। 1799 में उसने ईसाई धर्म को यूनानी तथा काण्ट के दर्शन में समन्वय करने का प्रयास किया।

अपना अध्ययन कार्य समाप्त करने के बाद हीगल ने स्विटरज़रलैण्ड के बर्न नामक नगर में निजी शिक्षक के रूप में कार्य किया। 1797 में उसने बर्न को छोड़कर फ्रेंकफर्ट में निजी-शिक्षक के रूप में कार्य करते हुए अपनी धर्मशास्त्र में रुचि जारी रखी। उसने धर्मशास्त्र के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला कि ईश्वर का ज्ञान केवल धर्म के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन उसने अपने इस विचार में परिवर्तन करते हुए कहा कि ईश्वर का ज्ञान धर्मशास्त्र की तुलना में दर्शनशास्त्र द्वारा सरलता से प्राप्त किया जा सकता है। 1799 में उसके पिता की मृत्यु से उसकी आजीविका की समस्या का समाधान भी निकल आया। उसकी इच्छा प्राध्यापक बनने की थी। उसने जीना विश्वविद्यालय में अपने पिता से प्राप्त 1500 डालर की आर्थिक सहायता से अध्यापक का पद प्राप्त करने का प्रयास किया। जीना उस समय जर्मनी के सांस्कृतिक पुनरुत्थान तथा पुनरुज्जीवन का केन्द्र बना हुआ था। उस समय वहाँ पर फिक्टे, शेलिंग, श्लेगल पढ़ा रहे थे। उन प्रकाण्ड विद्वानों के सम्पर्क में आने पर हीगल को भी अपनी प्रतिभा निखारने का अवसर प्राप्त हुआ। उसे जीना विश्वविद्यालय में ही 1803 ई0 में अस्थायी प्राध्यापक की नौकरी मिल गई और 1805 में उसकी सेवा स्थायी हो गई। लेकिन भाग्य ने उसका साथ नहीं दिया।

1806 ई0 में नेपोलियन की सेनाओं ने जीना नगर में प्रवेश किया। हीगल को भी अपनी जान बचाने के लिए जीना छोड़ना पड़ा, क्योंकि इस युद्ध में जर्मनी की हार तथा नेपोलियन की जीत हुई। इससे जीना में शिक्षण-कार्य अस्त-व्यस्त हो गया और हीगल को भी प्राध्यापक का पद छोड़ना पड़ा। नौकरी छूट जाने पर हीगल की आर्थिक स्थिति खराब हो गई। इस दौरान गेटे ने भी उसकी मदद की। उसने एक वर्ष तक सम्पादक के पद पर भी कार्य किया। इसी समय 1807 में उसने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'Phenomenology of Spirit' का प्रकाशन किया। उसने 1808 में न्यूरमबर्ग के एक माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक के पद को प्राप्त किया और 1816 ई0 तक वह इस पद पर रहा। 1811 में उसने बॉन टकर नामक महिला से विवाह कर लिया। उसे अपने परिवार से गहरा लगाव था। इसी कारण उसने आगे चलकर परिवार के महत्त्व पर लिखा।

1816 में उसने 'Logic' नामक ग्रन्थ का प्रकाशन किया। इससे हीगल की प्रसिद्धि बढ़ गई। इसके बाद उसने एरलानजन, बर्लिन तथा हीडलबर्ग विश्वविद्यालय में अध्यापक कार्य किया। 1821 ई0 में उसने 'Philosophy of Rights' नामक रचना का प्रकाशन किया। इस पुस्तक के कारण हीगल की ख्याति राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर तक फैल गई। हीगल ने तत्कालीन प्रशिया की सरकार की विचारधारा को बदल दिया। इसलिए उसे ‘सरकारी दार्शनिक’ की भी संज्ञा दी गई। 1830 में उसे बर्लिन विश्वविद्यालय का रेक्टर बना दिया गया। 1831 में बर्लिन में हैजे का प्रकोप बढ़ गया। इस दौरान हैजे की बीमारी से इस महान् दार्शनिक की जीवन लीला समाप्त हो गई।

हीगल पर प्रभाव

कोई भी चिन्तक समकालीन परिस्थितियों व पूर्ववर्ती विचारकों से अवश्य ही प्रभावित होता है। हीगल भी इसका अपवाद नहीं है। उस पर निम्न प्रभाव पड़े :-

फ्रांसीसी क्रान्ति का प्रभाव

सुकरात का प्रभाव

प्लेटो का प्रभाव

अरस्तू का प्रभाव

मैकियावली का प्रभाव

रूसो का प्रभाव

काण्ट का प्रभाव

फ्रांसीसी क्रान्ति का प्रभाव

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