है (घ) निंदक नेड़ा राखिए का तात्पर्य (i) निंदक को दूर रखना चाहिए। (ii) निंदक से सतर्क रहना चाहिए। (iii) निंदक को निकट रखना चाहिए। (iv) निंदक पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
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निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय। अर्थात: जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिक से अधिक पास ही रखना चाहिए क्योंकि वह बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बताकर हमारे स्वभाव को साफ कर देता है। यह कबीर जी का दोहा है जो उनकी साखियों से लिया गया है।16-May-2020
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