हाहाकार
गूज रहा है।
का
और ये गूंगे... अनेक-अनेक हो संसार में भिन्न-भिन्न रूपों में छा गए हैं - जो
कहना चाहते हैं, पर कह नहीं पाते। जिनके हृदय की प्रतिहिंसा न्याय और अन्याय
तको परखकर भी अत्याचार को चुनौती नहीं दे सकती, क्योंकि बोलने के लिए स्वर
होकर भी स्वर में अर्थ नहीं है... क्योंकि वे असमर्थ हैं।
prasang vhakhya
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Hola amigos..........
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