हौज में 2/15भाग पानी था। मैंने हौज में3 / 20भाग पानी डाला और भैया ने3/12 भाग पानी डाला। अब हौज
मैं कितना भाग पानी हुआ? हौज का कितना भाग खाली है?
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अखिलेश चंद्र
एक सुल्तान ने राजधानी के लिए लाहौर की जगह दिल्ली को चुना। उनकी नई राजधानी में पानी की जबरदस्त किल्लत हुई। एक रात उन्हें सपना आया। उनके सपने में पैगंबर मोहम्मद साहब आए और उन्हें एक खास जगह की ओर इशारा करके तालाब बनवाने को कहा। अगले ही दिन सुल्तान उस जगह पर पहुंचे और तालाब खुदवाने का काम शुरू करवाया। इस सुल्तान का नाम था शम्सुद्दीन इल्तुतमिश। सन 1230 में खुदवाया गया यह तालाब हौज-ए-शम्सी के नाम से महरौली में आज भी मौजूद है।
ऐसा माना जाता है कि जब सपना देखने के अगले दिन सुल्तान इल्तुतमिश उस जगह पर पहुंचे, जिस ओर मोहम्मद साहब ने इशारा किया था तो उन्हें वहां पैगंबर के घोड़े के खुरों में से एक खुर का निशान भी दिखा था। तालाब खुदवाने के साथ ही सुल्तान ने खुर वाली जगह के आसपास एक गुंबदनुमा मंच भी बनवाया। यह माना जाता है कि 12 खंभों पर टिकी यह गुंबद वाली इमारत शुरुआत में तालाब के बीचोबीच थी, जहां तक नाव से ही पहुंचा जा सकता था। घोड़े के खुर के छाप वाले मूल पत्थर को बाद में हटा दिया गया था। अभी जो पत्थर है वह नया है। हौज-ए-शम्सी के बारे में एक कहानी यह भी है कि पैगंबर मोहम्मद केवल सुल्तान इल्तुतमिश के ही सपने में नहीं आए थे, बल्कि वह सूफी संत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के सपने में भी आए थे। सूफी संत को भी उन्होंने तालाब बनवाने की वही जगह बताई, जो उन्होंने सुल्तान के सपने में आकर बताई थी।
इल्तुतमिश ने सुल्तान बनने बाद किला राय पिथौरा को अपनी राजधानी बनाया था। इस नई राजधानी में पानी की बहुत ही किल्लत थी। इससे निपटने के लिए तालाब खुदवाया गया था। इसकी जगह के बारे में बताने के लिए इल्तुतमिश और सूफी संत के सपने में पैगंबर मोहम्मद आए थे। यह तालाब इतना बड़ा था कि इससे प्रसिद्ध यात्री इब्नबतूता भी बहुत प्रभावित हुए थे। इस तालाब में बारिश का पानी भरा होता था, जिसे बहुत ही पवित्र माना जाता था। इसके आसपास कई मुस्लिम शासकों और संतों की कब्रें भी हैं। इल्तुतमिश ने जब तालाब खुदवाया था तब यह करीब 5 एकड़ में फैला था। आजकल यह सिकुड़ गया है। एक जमाने में गुंबद वाली इमारत जो तालाब के बीचोबीच थी वह एक कोने में आ गई है।
इल्तुतमिश, गुलाम वंश के तीसरे सुल्तान थे। उन्होंने सन् 1211-1236 तक दिल्ली सल्तनत पर राज किया। वह कुतुबुद्दीन ऐबक के दामाद भी थे। इल्तुतमिश की मौत के बाद उन्हें कुतुबमीनार के पास ही दफना दिया गया। मरने से पहले उन्होंने अपनी रजिया को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। काफी विरोध के बाद रजिया, दिल्ली की सुल्तान बनी थीं।