है जन्म लेते जगह में एक ही
एक ही पौधा उन्हें है पालता
रात में उन पर चमकता चांद भी
एक ही सी चांदनी है डालता
meh उन पर बरसता eksa
eksi उन पर हवाएं हैं bahi
पर सदा ही यह दिखाता है हमें
ढंग उनके एक से होते नहीं
छेद कर कांटा किसी की उंगलियां
फाड़ देता है किसी का var vasan
प्यार धोबी तितलियों के पर कतर
bhaur का है vedh deta shyam tan
फूल लेकर तितलियों को गोद में
bhaur को अपना अनूठा रस पिला
नीचे सुगंध और निराले रंग से
है सदा देता कली जी की खिला
है खटकता एक सबकी आंखों में
दूसरा है सोहता सूर शीश पर
किस तरह कुल की बढ़ाई काम दे
जो किसी में हो बड़प्पन की कसर
-अयोध्या सिंह उपाध्याय
जन्म -1865,आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)
मृत्यु -1947
रचनाएं -प्रियप्रवास,padya प्रसून,वैदेही वनवास,अधखिला फूल,प्रेम कांता आदि l
परिचय -अयोध्या सिंह उपाध्याय जी का खड़ी बोली हिंदी के प्रारंभिक कवियों में murधन स्थान है l आप हिंदी के एक आधार स्तंभ है l प्रस्तुत कविता में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि मनुष्य विशिष्ट कुल में जन्म लेने से नहीं बल्कि अपने कर्मों से ही बड़ा बनता है l
शब्द वाटिका
meh -बादल
वर -श्रेष्ठ, सुंदर
वसन - वस्त्र
vedhna -घायल करना
bhaur -भंवरा
जी - मन
सोहना -शोभ देना
शीश - seer
मुहावरा
जी की कली खेलना -खुश होना
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Explanation:
nice poemm
nice pooem once again
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A very nyc poem on a very nyc topic
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