है-
कहते आते थे यही अभी नरदेही,
"माता न कुमाता, पुत्र कृपुत्र भले ही।"
अब कहें सभी यह हाय! विरुद्ध विधाता-
"हे पुत्र पुत्र ही, रहे कुमाता माता।'
बस मैने इसका बाह्य-मात्र ही देखा,
दृढ़ हृदय ने देखा, मृदुल गात्र ही देखा।
परमार्थ न देखा, पूर्ण स्वार्थ ही साधा,
इस कारण ही तो हाय आज यह बाधा!
युग-युग तक चलती रहे कठोर कहानी-
"रघुकुल में थी एक अभागिन रानी।"
(1) उपर्युक्त पद्यांश के अनुसार आज तक लोग क्या कहते आए हैं?
है?
(ii) इस पंक्तियों में कैकेयी को किस बात पर पश्चात्ताप हुआ
(iii) उपर्युक्त पंक्तियों में किस रस का प्रयोग हुआ है?
(iv) रेखांकित अंश का भावार्थ लिखिए।
(1) कविता के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
अथवा
पापा
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sorry, I don't understand.
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