हालदार साहब को कस्बे के नागरिकों का कौन सा प्रयास सराहनीय लगा?
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नेताजी की मूर्ति शहर के मुख्य बाजार के मुख्य चौराहे पर लगाई गई थी। मूर्ति संगमरमर की थी और दो फुट ऊंची थी। फौजी वर्दी में होने के कारण नेताजी की मूर्ति और भी सुंदर लग रही थी । मूर्ति को देखते ही 'दिल्ली चलो' और 'तुम मुझे खून दो...' नारे याद आने लगते थे। महत्त्व मूर्ति के रंग रुप या कड़ का नहीं, उस भावना का है, जिस भावना से मूर्ति का निर्माण हुआ था। वास्तव में यह नगरपालिका द्वारा सफल एवं सराहनीय प्रयास था।
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नेताजी ने फौजी वर्दी भी पहन रखी थी। मूर्ति संगमरमर की थी किंतु नेताजी की आंखों पर चश्मा असली था। हालदार साहब को इससे कस्बे वालों की देशभक्ति का एहसास हुआ। इसी कारण सेेेे हालदार साहब को कस्बे के नागरिकों का प्रयास सराहनीय लगा।
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