हिमाचल प्रदेश के घुमंतू चरवाहे कौन थे उनकी प्रमुख विशेषताओं को बताइए hello answer bta do
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ऐसे लोगों को घुमंतू या खानाबदोश कहते हैं जो एक स्थान पर टिक कर नहीं रहते बल्कि अपनी जीविका के निमित्त एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं। इन घुमंतू लोगों का जीवन इनके पशुओं पर निर्भर होता है। वर्ष भर किसी एक स्थान पर पशुओं के लिए पेयजल और चारे की व्यवस्था सुलभ नहीं हो पाती ऐसे में ये एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमणशील रहते हैं। जब तक एक स्थान पर चरागाह उपलब्ध रहता है तब तक ये वहाँ रहते हैं, परन्तु चरागाह समाप्त होने पर पुनः दूसरे नए स्थान की ओर चले जाते हैं।
घुमंतू लोगों के निरंतर आवागमन से पर्यावरण को निम्न लाभ होते हैं-
यह खानाबदोश कबीलों को बहुत से काम जैसे कि खेती, व्यापार एवं पशुपालन करने का अवसर प्रदान करता है।
उनके पशु मृदा को खाद उपलब्ध कराने में सहायता करते हैं।
यह चरागाहों को पुनः हरा-भरा होने और उसके अति-चारण से बचाने में सहायता करता है क्योंकि चरागाहें अतिचारण एवं लम्बे प्रयोग के कारण बंजर नहीं बनतीं।
यह विभिन्न क्षेत्रों की चरागाहों के प्रभावशाली प्रयोग में सहायता करता है।
निरंतर स्थान परिवर्तन के कारण किसी एक स्थान की वनस्पति का अत्यधिक दोहन नहीं होता है।
चरागाहों की गुणवत्ता बनी रहती है।
लगातार स्थान परिवर्तन से भूमि की उर्वरता बनी रहती है।
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हिमाचल प्रदेश के घुमंतू चरवाहे ऐसे लोग थे जो कभी एक जगह टिके नहीं रहते थे। वे अपनी रोजी रोटी की व्यवस्था के लिए इधर उधर घूमते रहते थे। इनमे मुख्य थे भोटिया, शेरपा व किन्नौरी।
- घुमंतू चरवाहों की विशेषताएं :
- हिमाचल प्रदेश में घुमंतू चरवाहे अपने जानवरो के साथ घूमते हुए दिखते है। चरवाहे भी टोली में रहते है तथा उनके आस पास उनकी बेड बकरियां झुंड या रेवड़ में होती है। किसी किसी के पास ऊंट भी रहते है।
- इन चरवाहों के घुमंतू होने का कारण है कि औपनिवेशिक शासन में इनके चरागाह सिमट कर रह गए। इन्हे यहां वहां जाने पर पाबंदियां लगाई गई । इनसे लगान भी लुटा जाता था जो बढ़ा दिया गया। खेती में इनका मुनाफा घट गया व जिसका परिणाम इनकी जीविका पर पड़ा।
- जब एक जगह से चरागाह उपयुक्त नहीं बचते तो ये हरे भरे स्थानों में चरागाह ढूंढ़ते है।
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