हेम हिमावत कब अपने हित हिम-आतप सहता है
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कभी न चुकने वाला ऋण है, जीना बहुत कठिन है; यों मरने तक हर जीने वाला जीता रहता है ! आते हैं फल उन वृक्षों पर जो न उन्हें खाते हैं; छाँह जहाँ मिलती औरों को छत्र वहाँ छाते हैं; गाते हैं जो गीत, कभी अपने न गीत गाते हैं हेम-हिमावत कब अपने हित हिम-आतप सहता है !
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