Hindi, asked by briann3120, 9 hours ago

हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे
मंदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा

Answers

Answered by bittusingh01m
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Answer:

प्रस्तुत काव्यांश में उषा का मानवीकरण कर उसे पानी भरने वाली स्त्री के रूप में चित्रित किया गया है। इन पंक्तियों में भोर का सौंदर्य सर्वत्र दिखाई देता है। कवि के अनुसार भोर रूपी स्त्री अपने सूर्य रूपी सुनहरे घड़े से आकाश रूपी कुएँ से मंगल पानी भरकर लोगों के जीवन में सुख के रूप में लुढ़का जाती है। तारें ऊँघने लगते हैं।

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