Hindi, asked by sonalisutar32, 9 months ago

हिमालय की बेटियाँ
भी तक मैने उन्हें दूर से देखा था। बड़ी गभीर, शात अपर
वीजा लगी प्यास मिटा सकेगा। बरस जाली नगी पहाड़ियों
httी पाटिया धुराचल्यका गाभण उपत्यकाएं ऐसा
परतु इस बार जब मै हिमालय के कधे पर चढ़ा तो वे कुछ और
सधु और ब्रह्मपुत्र-ये दो ऐसे नाम है जिनक सुनते ही राबी, सतलुज, व्यास
ब, झेलम, काबुल (कुभा) कपिशा, गंगा, यमुना सरयू, गंडक, कासी आदि
शालय को छोटो-वही सभी बेटियाँ आँखों के सामने नाचने लगती है। वास्तव
सिंधु और ब्रह्मपुत्र स्वयं कुछ नहीं है। दयालु हिमालय के पिचले हुए दिल की
--एक बूंद न जाने कब से इकट्ठा हो-होकर इन दो महानदों के रूप में समुद्र
और प्रवाहित होती रही है। कितना सौभाग्यशाली है क समुद्र जिसे पर्वतराज
शालय की इन दो बेटियों का हाथ पकड़ने का श्रेय मिला।
जिन्होंने मैदानों में ही इन नदियों को देखा होगा. उनके खयाल में शायद ही
बात आ सके कि बूढे हिमालय की गोद में बच्चियाँ बनकर ये कैसे खेला
ती हैं। माँ-बाप की गोद में नंग-धड़ग होकर खेलनेवाली इन बालिकाओं का
पहाड़ी आदमियों के लिए आकर्षक भले न हो, लेकिन मुझे तो ऐसा
भावना प्रतीत हुआ वह रूप कि हिमालय को ससुर और समुद्र को उसका
भाद कहने में कुछ भी झिझक नहीं होती है।
13
खाई हुई लगती थी। सात महिला की भांति के प्रतीत होता।
उनके प्रति मेरे दिल में आदर और श्रद्धा के भाव थे। माँ
मौसी और मामी की गोद की तरह उनकी धारा में इबकिया लगाया बोडसेचिनार फेदलालों में पहुंचकर शाबर इन्हें
सामने थी। मैं हैरान था कि यही दुबली-पतली गगा, यही यमुना, यही इन नाचटियों के लिए कितना सिर धनता होगा बडी बडी चाटियों
समतल मैदानों में उतरकर विशाल कैसे हो जाती है। इनका उछलना और कर पूछिए तो उत्तर में विराट मौन के सिवाय उनके पास और रखाही​

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हिमालय की बेटियाँ

भी तक मैने उन्हें दूर से देखा था। बड़ी गभीर, शात अपर

वीजा लगी प्यास मिटा सकेगा। बरस जाली नगी पहाड़ियों

httी पाटिया धुराचल्यका गाभण उपत्यकाएं ऐसा

परतु इस बार जब मै हिमालय के कधे पर चढ़ा तो वे कुछ और

सधु और ब्रह्मपुत्र-ये दो ऐसे नाम है जिनक सुनते ही राबी, सतलुज, व्यास

ब, झेलम, काबुल (कुभा) कपिशा, गंगा, यमुना सरयू, गंडक, कासी आदि

शालय को छोटो-वही सभी बेटियाँ आँखों के सामने नाचने लगती है। वास्तव

सिंधु और ब्रह्मपुत्र स्वयं कुछ नहीं है। दयालु हिमालय के पिचले हुए दिल की

--एक बूंद न जाने कब से इकट्ठा हो-होकर इन दो महानदों के रूप में समुद्र

और प्रवाहित होती रही है। कितना सौभाग्यशाली है क समुद्र जिसे पर्वतराज

शालय की इन दो बेटियों का हाथ पकड़ने का श्रेय मिला।

जिन्होंने मैदानों में ही इन नदियों को देखा होगा. उनके खयाल में शायद ही

बात आ सके कि बूढे हिमालय की गोद में बच्चियाँ बनकर ये कैसे खेला

ती हैं। माँ-बाप की गोद में नंग-धड़ग होकर खेलनेवाली इन बालिकाओं का

पहाड़ी आदमियों के लिए आकर्षक भले न हो, लेकिन मुझे तो ऐसा

भावना प्रतीत हुआ वह रूप कि हिमालय को ससुर और समुद्र को उसका

भाद कहने में कुछ भी झिझक नहीं होती है।

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खाई हुई लगती थी। सात महिला की भांति के प्रतीत होता।

उनके प्रति मेरे दिल में आदर और श्रद्धा के भाव थे। माँ

मौसी और मामी की गोद की तरह उनकी धारा में इबकिया लगाया बोडसेचिनार फेदलालों में पहुंचकर शाबर इन्हें

सामने थी। मैं हैरान था कि यही दुबली-पतली गगा, यही यमुना, यही इन नाचटियों के लिए कितना सिर धनता होगा बडी बडी चाटियों

समतल मैदानों में उतरकर विशाल कैसे हो जाती है। इनका उछलना और कर पूछिए तो उत्तर में विराट मौन के सिवाय उनके पास और रखाही

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