हिमालय का संदेश कविता का भावार्थ
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हिमालय कविता में रामधारी सिंह दिनकर ने हिमालय का गुण गान करा है। वे विशाल हिमालय को अपनी भारतमाता का मुकुट कहते हैं। हिमालय युगों से माननीय और बंधनों से मुक्त रहा है। वह एकऋषि के समान समाधि में बैठा हुआ है। कवि जानना चाहते हैं कि वह ध्यान करके किस समस्या का हल खोज रहा है।
कवि हिमालय को सुख का सागर, पांच नदियों वाला,ब्रह्मा का पुत्र, आदि कहकर संबोधित करते हैं। जिसकी करुणा गंगा और यमुना की धारा बनकर भारत की पुण्यभूमि में बह रही हैं। हिमालय ने हमेशा भारत की रक्षा करी है और दुश्मनों को अंदर नहीं आने दिया है। कवि हिमालय से इस संकट की घड़ी में अपना मौन त्यागकर, सहायता करने को कहते हैं।
कवि कहते हैं कि प्यारा स्वदेश वीरान हो गया है। इसलिए वे अपने नगपति और विशाल हिमालय, अपने तपस्वी को जागने के लिए कहते हैं।
वे कहते हैं की चाहें युधिष्ठिर जैसे धीर को स्वर्ग जाने दो लेकिन हमें अर्जुन और भीम को उनके धनुष और गदा के साथ लौटा दो।
भगवान शिव से तांडव नृत्य करने के लिए कहो ताकि भारत में भगवान का नाम गूँज उठे।
धरा अंगड़ाई ले और प्रमादजाये। वे तपस्वी हिमालय
से कहते हैं कि यह समय तप करने का नहीं है। वे उससे मौन त्याग करके सिंहनाद करने के लिए कहते हैं। नवयुग कीशंख ध्वनि उसे जगा रही है।