हिमालय का सौदर्य की अनुच्छेद
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हिमालय पर्वतों का राजा है । यह बहुत विशाल है । इसमें अनेक चोटियाँ हैं । माउंट एवरेस्ट इसकी सबसे ऊँची चोटी है । बहुत सी अन्य चोटियों भी आसमान को छूती नजर आती हैं । भारत के उत्तर में स्थित लगभग 2500 किमी लंबी यह पर्वत श्रुंखला एक सजग प्रहरी की भाँति दिखाई देती है । हिमालय की गोद में बसे गाँव और शहर एक ऐसी सभ्यता के साक्षी हैं जो युगों-युगों से चली आ रही है ।
हिमालय का महत्त्व आदि काल से है । पुराणों में भी इसका वर्णन मिलता है । कहा जाता है कि देवाधिदेव महादेव हिमालय में कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं । योगी यहाँ ध्यान लगाते रहे हैं । वे यहाँ की गुफाओं में निवास कर तपस्या करते रहे हैं । हिमाल के आँचल में बद्रीनाथ, केदारनाथ, अमरनाथ आदि प्रसिद्ध तीर्थस्थल हैं । देश-विदेश के लाखों लोग हर वर्ष यहाँ तीर्थयात्रा पर आते हैं । बहुत से लोग यहाँ के दर्शनीय स्थलों को देखने के लिए तथा पर्वतीय स्थलों पर पर्यटन के लिए आते हैं । यहाँ के अनेक स्थानों पर बर्फ पड़ती है अत: लोग यहाँ स्कीइंग, आइस हाँकी जैसे खेलों का आनंद लेते हैं ।
पर्वतारोहियों के लिए हिमालय से अच्छी जगह कोई और नहीं हो सकती । संसार के विभिन्न भागों के साहसी लोग सर्वोच्च पर्वत शिखर एवरेस्ट पर चढ़ाई कर चुके हैं । अन्य पर्वत शिखरों पर चढ़ने लोग आते ही रहते हैं । अत: यहाँ कई प्रशिक्षण केन्द्र भी हैं जहाँ इच्छूक लोगों को हिमालय पर चढ़ने का प्रशिक्षण दिया जाता है ।
हिमालय भारत के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है । यदि हिमालय न होता तो भारत के अधिकांश उत्तरी भाग में मरुभूमि होती । यह हिमालय ही है जो पूर्वी तथा दक्षिणी आर्द्र मानसूनी हवाओं को रोककर भारत के उत्तरी राज्यों में वर्षा कराता है । इससे इन राज्यों में भरपूर फसल होती है । इन राज्यों की सभी नदियाँ वर्षा ऋतु में जलप्लावित रहती हैं । वर्षा ऋतु की समाप्ति के बाद भी गंगा, यमुना जैसी बड़ी नदियों में जल रहता है । इसमें भी हिमालय का योगदान है । हिमालय की ऊँची चोटियों की बर्फ सूर्य की गर्मी से पिघलकर इन नदियों में जल के रूप में आती रहती है । इस तरह हिमालय सूखे होठों की प्यास शांत करने वाला साक्षात देवता बन जाता है ।
हिमालय मनोरम स्थल है । यहाँ प्राकृतिक वैभव बिखरा पड़ा है । यहाँ प्रकृति अपने अनमोल खजाने मुक्त हस्त से लुटाती है । हिमाच्छादित पर्वत अद्भुत समाँ बाँध देते हैं । प्रात: कालीन सूर्य की किरणों से इनकी शोभा और भी निखर आती है । देखने वाले ठगे से रह जाते हैं । थोड़े नीचे की ओर चलें तो वनप्रांत आरंभ हो जाते हैं । देवदार, चीड़ आदि के ऊँचे-ऊँचे पेड़ यहाँ की शोभा बढ़ाते हैं । ये पेड़ जगंली जीव-जंतुओं की शरणस्थली हैं । कितने ही जानवर यहाँ निवास करते हैं । भालू, रीछ, हाथी, बंदर, याक, जेबरा, गेंडा, चीता हिरन सब यहाँ स्वयं को किसी हद तक सुरक्षित अनुभव करते हैं । उधर पेड़ों पर पक्षियों का कलरव सुनाई देता है । छोटी-छोटी नदियाँ, ऊँचे पहाड़, गहरी खाइयाँ, पेड़, पशु, पक्षी आदि मिलकर अद्भुत प्राकृतिक दृश्य उपस्थित करते हैं ।
हिमालय की तराई में अनेक गाँव और शहर बसे हैं । पहाड़ी लोग भेड़-बकरियाँ बड़ी संख्या में पालते हैं । इन पालतू पशुओं के लिए हिमालय में चारागाह होता है । स्थानीय लोग हिमालय से कई प्रकार की जड़ी-बूटियाँ प्राप्त करते हैं । हिमालय के वनों से कीमती लकड़ियाँ, गोंद तथा पत्ते प्राप्त होते हैं । लकड़ियों की बहुतायत लकड़ी के ढलवाँ घर बनाने में मदद करती है । इन वनों से दियासलाई की लकड़ी तथा कागज बनाने की लुगदी भी प्राप्त होती है ।
हिमालय क्षेत्र में बहुत ठंड पड़ती है । गर्मियों में भी यहाँ अधिक गर्मी नहीं पड़ती । इसलिए मैदानी इलाके के लोग यहाँ गर्मी की छुट्टियों बिताने आते हैं । अत: यहाँ पर्यटन व्यवसाय फलता-फूलता रहता है ।
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जहाँ आज हिमालय है वहां कभी टेथिस नाम का सागर लहराता था। यह एक लम्बा और उथला सागर था। यह दो विशाल भू - खन्डो से घिरा हुआ था। इसके उत्तर में अंगारालैन्ड और दक्षिण में गोन्ड्वानालैन्ड नाम के दो भू - खन्ड थे । लाखों वर्षों इन दोनों भू - खन्डो का अपरदन होता रहा और अपरदित पदार्थ (मिट्टी, कन्कड, बजरी, गाद आदि) टेथिस सागर में जमा होने लगे । ये दो विशाल भू - खन्ड एक - दुसरे की ओर खिसकते भी रहे। दो विरोधी दिशाओ में पड़ने वाले दबाव के कारण सागर में जमी मिट्टी आदि की परतो में मोड़ (वलय) पड़ने लगे। ये वलय द्वीपों की एक श्रृंखला के रूप में पानी की सतह् से ऊपर आ गए। यह क्रिया निरंतर चलती रही और कलान्तर में विशाल वलित पर्वत श्रेणियो के निर्माण हुआ जिन्हे आज हम हिमालय के नाम से जाना जाता हैं।
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