हाम्रो गोकर्णेश्वर बारेमा निबन्ध लेख ।
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Video: बीसलपुर में होती है पचास फिट से अधिक लम्बे शिवलिंग की पूजा, त्रिवेणी संगम पर बसा है बीसलपुर का गोकर्णेश्वर महादेव मंदिर
By: Pawan Sharma
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Published: 11 Feb 2018, 04:06 PM IST
मंदिर का निर्माण 1725 ईस्वी में जयपुर के राजा सवाई जयसिंह ने करवाया था।
बनवारी वर्मा
राजमहल। बीसलपुर में अरावली पर्वत मालाओं केबीच जमीन से लगभग डेढ़ सौ फिट की उंचाई पर बनी पहाड़ी गुफा में स्थित है महादेव मंदिर में पचास फिट से अधिक लम्बे शिवलिंग की पूजा होती है। जो गोकर्णेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। यहां के पवित्र दह के करीब खारी, बनास व डाई नदियों के त्रिवेणी संगम के चलते दह में लोगों की आस्था ओर बढ़ गई है।
यहां चारों तरफ हरियाली के साथ ही वन क्षेत्र व बीसलपुर बांध के चलते यहां वर्षभर रोजाना सैकड़ों श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। मंदिर पर प्रत्येक सोमवार, अमावस्या,पूर्णिमा,प्रदोष,चतुर्दशी आदि अवसरों पर अधिक संख्या में श्रद्धालु पहुंचते है। मंदिर परिसर में वर्षो पूर्व से हर वर्ष कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा, वैशाख शुक्ल पूर्णिमा महाशिवरात्री को मेला लगता है। जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं यहां पहुंचकर पवित्र दह में डुबकी लगाने के साथ ही शिवजी का जलाभिषेक करते है।
गोकर्णेश्वर मंदिर एक नजर में-
बीसलपुर स्थित गोकर्णेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण 1725 ईस्वी में जयपुर के राजा सवाई जयसिंह ने करवाया था। उस समय राजा जयसिंह की ओर से मंदिर, दरवाजा, सिढिंया व सामने नौचौक का निर्माण ही हो पाया था। तब से ही पुरानी रियासत राजमहल व बीसलपुर के राजाओं में इस स्थान को लेकर वाद विवाद चलता रहा है।
जिसके कारण यहां अधुरे कार्य काफी वर्षो तक पुरे नहीं हो पाये थे। बाद में अगस्त 1982 में ठाकुर रणजीत सिंह की अध्यक्षता में मंदिर विकास समिति का गठन हुआ उसके बाद से मंदिर का जिर्णोद्धार शुरू किया गया। यहां के शिवलिंग के दाहिनी तरफ गाय के कान का निशान बना हुआ है जिससे इस स्थान को गोकर्ण अथार्त गोकर्णेश्वर नाम दिया गया है।
शिवलिंग के उपर पहाडी गुफा का हिस्सा शेष नांग की भांति शिवलिंग पर झुका हुआ है। अखण्ड जोत- मंदिर के अंदर पिछले कई वर्षो से घी की अखण्ड जोत जल रही है। जो पुजारियों के अनुसार वर्षो से कभी खण्डित नही हुई अथार्त आज तक बुझी नहीं है।