होमो सेपियन्स के विकासीय इतिहास के दौरान
होने वाला सर्वाधिक मुख्य परिवर्तन है -
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यह कल्पना करना ही अजीब लगता है कि विभिन्न किस्म के जीवों के धरती पर आ जाने के बाद भी लम्बे समय तक मानव जाति का प्रादुर्भाव इस धरती पर नहीं हुआ था। हम मनुष्य इस धरा पर बहुत लम्बे समय से नहीं हैं। पृथ्वी के जन्म-काल से देखें तो हम अत्यंत ही कम समय से इस धरती पर रह रहे हैं। बस कोई दो या ढाई लाख वर्ष या उससे भी कम समय पूर्व से। सभ्य रूप में तो महज कुछ हजार वर्षों का हमारा इतिहास है। एक चीज है कि पूरी दुनिया की ही तरह हम भी लगातार बदलते, परिवर्तित होते रहे हैं। आज भी हम लगातार बदलते जा रहे हैं। परिवर्तन का स्पष्ट दिखलाई देने वाला रूप कुछ समय बाद नजर आता है। और तब हमारा एक अन्य रूप चिन्हित किया जाता है।
स्वयं मानव जाति का इतिहास किसी भी चीज के इतिहास से कहीं ज्यादा दिलचस्प है। जैसा कि मैंने पहले बतलाया है, सृष्टि सम्बन्धी हमारी विशिष्ट वैज्ञानिक जानकारियां सौ-दो वर्षों की ही है। मैंने महान वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन की भी थोड़ी-सी चर्चा की थी कि उनकी खोज-पूर्ण किताब ‘ओरिजिन ऑफ़ स्पीसीज’ ने कैसे जेनेसिस सम्बन्धी हमारी रूढ़ धारणाओं को बदला। डार्विन की दूसरी किताब ‘डिसेंट ऑफ़ मैन’, जो 1871 ने प्रकाशित हुई थी, ने मानव जाति के प्रादुर्भाव का एक अस्पष्ट ही सही खाका प्रस्तुत किया। उनने महावानरों की किसी प्रजाति को मानव जाति का पूर्वज बतलाया, यानी वैसी-ही किसी प्रजाति का विकसित रूप आज का मानव समाज है। इसे लेकर लम्बी बहस हुई। इसके मजाक भी उड़ाए गए। लेकिन एक नए बहस का आरम्भ तो हो ही गया। डार्विन के ज़माने तक संसार के भिन्न क्षेत्रों में महावानरों और मानवजाति के कुछ प्राचीन कंकाल मिले थे। लेकिन उन पर अपेक्षित अनुसंधान तब तक संभव नहीं हो सका, जब तक डार्विन की जीवों के विकास सम्बन्धी एक सुचिंतित और बहुत कुछ तथ्यपूर्ण परिकल्पना नहीं आ गयी। डार्विन के अनुसंधानों और निष्कर्षों की रौशनी में एंथ्रोपोलॉजी (मानव-शास्त्र )से जुड़े विद्वानों ने जब कार्य आरम्भ किया, तब अनेक रहस्योद्घाटन हुए। मसलन हमें क्रमिक विकास के वे तमाम लिंक मिले, जिनका डार्विन ने केवल अनुमान किया था।