हामिद खाँ की दुकान का दृश्य कैसा था?
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हामिद खाँ की दुकान तक्षशिला रेलवे स्टेशन से पौन मील दूरी पर एक गाँव के तंग बाज़ार में थी। उसकी दुकान का आँगन बेतरतीबी से लीपा था तथा दीवारें धूल से सनी थीं। ... लेखक तक्षशिला के पौराणिक खंडहर देखने पाकिस्तान गया था।
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हामिद खाँ एक अधेड़ उम्र का पठान था जो अपनी एक छोटी सी दुकान चलाता था। उसकी दुकान में खाने के लिए चपाती और सालन आदि मिलते थे। लेखक द्वारा मुसलमानी होटल में खाना खाने के कारण व उसकी बातों से प्रभावित होकर वह उसे अपना मेहमान मानता है। यहाँ तक कि वह उससे खाने के पैसे भी नहीं लेता। हिंदू मुस्लिम एकता व उनके आपसी भाईचारे को देखने के लिए वह भारत आना चाहता है। वह ईमान से हिंदू और मुसलमान के बीच मुहब्बत चाहता है। उसके लेखक के साथ भी सौहार्दपूर्ण आत्मीय संबंध स्थापित हो गए थे।
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