Hindi, asked by AdhyanJain, 10 months ago

हामिद खाँ कहानी का मूल भाव लिखे। class 9 ch-5, Hamid Khan, hindi B​

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Answered by shahidul07
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Explanation:

अशिक्षित और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की शिक्षा पर बल दिया जाए, अशिक्षित लोगों को भी लघु और कुटीर उद्योग धन्धों द्वारा रोजगार से जोड़ा जाए। अपने अधिकार और कर्तव्यों के प्रति जागरूक किया जाए तथा दंगों में कफ्यू लगाने पर श्रमिक वर्ग रोटी-रौजी के लिए मजबूर हो जाता है। वह धन्धा नहीं कर पाता। दंगों को रोकने के लिए सभी को सहृदयता एवं एकता की भावना मन में लानी होगी। आपस में जाति-भेद, भाई-चारे की भावना, सहयोग व प्रेम की भावना के लिए उनको जागरूक किया जाए।

हामिद ने पूछा कि एक हिन्दू मुसलमानी होटल में क्या खाना खाएँगे। इस पर लेखक ने कहा कि हमारे यहाँ अगर बढ़िया चाय पीनी हो या बढ़िया पुलाव खाना हो तो लोग बेखटके मुसलमानी होटल में जाया करते हैं। इस बात पर हामिद को यकीन नहीं हो पा रहा था।

जब लेखक ने हामिद खाँ को यह बताया कि मालाबार (केरल) में हिन्दू-मुसलमान मिलकर रहते हैं, एक दूसरे के तीज त्योहार में शामिल होते हैं, उनमें दंगे न के बराबर होते हैं, भारत में मुसलमानों द्वारा पहली मस्जिद का निर्माण उसके राज्य में ही किया गया। हामिद खाँ को इन सब बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था। वह ऐसी अच्छी जगह को अपनी आँखों से देखना चाहता था।

हामिद खाँ और लेखक के बीच तब सम्बन्ध स्थापित हुआ जब लेखक तक्षशिला के खण्डहर में घूमते हुए भूख-प्यास से बेहाल हो हामिद खाँ की दुकान में भोजन करता है। हामिद खाँ उसे आत्मीय भाव से भोजन खिलाता है और अपना मेहमान बनाकर उससे पैसे तक नहीं लेता। दोनों में एक सौहार्दपूर्ण आत्मीय सम्बन्ध स्थापित हो जाता है।

तक्षशिला में आगजनी की खबर पढ़कर लेखक को हामिद खाँ की याद आ गई। उसके यहाँ उसने खाना खाया था। उसे हामिद खाँ की आवाज, उसके साथ बिताए क्षणों की यादें आज भी ताजा हैं। उसकी मुस्कान उसके दिल में बसी है। लेखक की यही कामना है कि तक्षशिला के साम्प्रदायिक दंगों की चिंगारियों की आग से हामिद और उसकी वह दुकान जिसने मुझ भूखे को दोपहर में छाया और खाना देकर मेरी क्षुधा को तृप्त किया था, बचे रहें। इनसे लेखक की पंथ निरपेक्ष मानवीय भावनाओं का पता चलता है।

हामिद खाँ एक मुसलमान पठान था। तक्षशिला में हामिद रहता था, वहाँ आगजनी की घटना हुई थी। हामिद मानव प्रेम में आस्था रखने वाला व्यक्ति था। लेखक के साथ उसका भावनात्मक जुड़ाव भी था। इसलिए अखबार में आगजनी की खबर पढ़कर लेखक ने उसकी सलामती के लिए ईश्वर से प्रार्थना की।

मालाबार में हिन्दू-मुसलमान प्रेम से रहते हैं। यदि किसी को बढ़िया चाय पीनी हो, या बढ़िया पुलाव खाना हो तो लोग बेखटके मुसलमानी होटल में जाया करते हैं। यहाँ सब मिल-जुलकर रहते हैं। मुसलमानों ने भारत में जिस पहली मस्जिद का निर्माण किया, वह मालाबार के कोइँगल्लूर में है। यहाँ दंगे भी नहीं के बराबर होते हैं। यहाँ आपसी समझ व सद्भावना है।

लेखक जब तक्षशिला के खण्डहर देखने गया तो वहाँ की कड़कड़ाती धूप में भूख-प्यास से बेहाल हो गया। तभी चपातियाँ की सौंधी महक सूँघकर वह एक दुकान की ओर मुड़ गया जहाँ पठान अंगीठी के पास बैठा चपातियाँ सेंक रहा था। लेखक ने उसे बताया कि वह मालाबार (केरल)का रहने वाला है तो उस व्यक्ति ने शंका व्यक्त की क्या वह हिन्दू होकर एक मुसलमानी होटल में खाना खायेगा। लेखक द्वारा यह बताने पर कि हमारे यहाँ हिंदू-मुसलमान मिल-जुलकर रहते हैं और बढ़िया चाय या बढ़िया पुलाव के लिए मुसलमानी होटल में खाना खाते हैं। लेकिन लेखक की इस बात पर पठान हामिद खाँ को विश्वास न हुआ और बोला-काश मैं आपके मुल्क में आकर सब बातें अपनी आँखों से देख पाता। उसने लेखक को बड़े प्रेम से खाना खिलाया और जिद करने पर भी केवल एक रुपया ही लिया और वह भी यह कहते हुए वापस कर दिया कि इससे अपने मुल्क में जाकर किसी मुसलमानी होटल में पुलाव खा लेना। इस पाठ से हमें यह सीख मिलती है कि हिंदू-मुसलमान सब एक हैं हमें आपस में प्रेम और भाईचारे की भावना से एक साथ मिल-जुलकर रहना चाहिए।

Answered by rani651
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