हामिद खां पाठ के अनुसार तक्षशिलो का
सामाजिक परिवेश किस प्रकार का था
धार्मिक सहिष्णुता युक्त
धार्मिक विद्वेष युक्त
धार्मिक समानता युक्त
धार्मिक सौहार्द पुक्त
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अशिक्षित और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की शिक्षा पर बल दिया जाए, अशिक्षित लोगों को भी लघु और कुटीर उद्योग धन्धों द्वारा रोजगार से जोड़ा जाए। अपने अधिकार और कर्तव्यों के प्रति जागरूक किया जाए तथा दंगों में कफ्यू लगाने पर श्रमिक वर्ग रोटी-रौजी के लिए मजबूर हो जाता है। वह धन्धा नहीं कर पाता। दंगों को रोकने के लिए सभी को सहृदयता एवं एकता की भावना मन में लानी होगी। आपस में जाति-भेद, भाई-चारे की भावना, सहयोग व प्रेम की भावना के लिए उनको जागरूक किया जाए।
हामिद ने पूछा कि एक हिन्दू मुसलमानी होटल में क्या खाना खाएँगे। इस पर लेखक ने कहा कि हमारे यहाँ अगर बढ़िया चाय पीनी हो या बढ़िया पुलाव खाना हो तो लोग बेखटके मुसलमानी होटल में जाया करते हैं। इस बात पर हामिद को यकीन नहीं हो पा रहा था।
जब लेखक ने हामिद खाँ को यह बताया कि मालाबार (केरल) में हिन्दू-मुसलमान मिलकर रहते हैं, एक दूसरे के तीज त्योहार में शामिल होते हैं, उनमें दंगे न के बराबर होते हैं, भारत में मुसलमानों द्वारा पहली मस्जिद का निर्माण उसके राज्य में ही किया गया। हामिद खाँ को इन सब बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था। वह ऐसी अच्छी जगह को अपनी आँखों से देखना चाहता था।
हामिद खाँ और लेखक के बीच तब सम्बन्ध स्थापित हुआ जब लेखक तक्षशिला के खण्डहर में घूमते हुए भूख-प्यास से बेहाल हो हामिद खाँ की दुकान में भोजन करता है। हामिद खाँ उसे आत्मीय भाव से भोजन खिलाता है और अपना मेहमान बनाकर उससे पैसे तक नहीं लेता। दोनों में एक सौहार्दपूर्ण आत्मीय सम्बन्ध स्थापित हो जाता है।
तक्षशिला में आगजनी की खबर पढ़कर लेखक को हामिद खाँ की याद आ गई। उसके यहाँ उसने खाना खाया था। उसे हामिद खाँ की आवाज, उसके साथ बिताए क्षणों की यादें आज भी ताजा हैं। उसकी मुस्कान उसके दिल में बसी है। लेखक की यही कामना है कि तक्षशिला के साम्प्रदायिक दंगों की चिंगारियों की आग से हामिद और उसकी वह दुकान जिसने मुझ भूखे को दोपहर में छाया और खाना देकर मेरी क्षुधा को तृप्त किया था, बचे रहें। इनसे लेखक की पंथ निरपेक्ष मानवीय भावनाओं का पता चलता है।
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