हीन भये जलमीन अधीन कहा कहु मा अकुलानि समाने।
नीर सनेही सों लय कलंक निरास है कायर त्यागत प्राने।
प्रीति की रीति सु क्यों समझै जड़ मीत के प्रान परे को प्रमाने।
या मन की जु दसा घन आनंद जीव की जीवनि जान ही जाने।
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