हिन्दी भाषा के पक्ष में बहस
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भारत में अंग्रेजी कभी भी जनशिक्षा का माध्यम नहीं हो सकती है। अंग्रेजी में निपुणता बहुतों के लिए अप्राप्य है तथा एक विशाल जनसमूह को असामान्य प्रतिस्पर्धा की स्थिति प्रदान करती है। प्रशासन व संभ्रांत पेशों की भाषा के रूप में भारतीयों पर अंग्रेजी थोपे जाने के 150 साल बीत जाने पर भी हमारी आबादी के 1 प्रतिशत लोग भी इसे प्रथम या द्वितीय भाषा के रूप में प्रयोग नहीं करते। यहां तक कि शिक्षित भारतीयों में भी अंग्रेजी तीसरे स्थान पर है। भारत में लगभग 45 प्रतिशत लोग हिन्दीभाषी राज्यों से आते हैं जबकि महाराष्ट्र, गुजरात, कश्मीर, असम, पंजाब, बंगाल, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा में एक बड़ी संख्या में लोग हिन्दी का व्यावहारिक ज्ञान रखते हैं।
भारतीय औपनिवेशिक भाषा के रूप में अंग्रेजी का प्रसार अमेरिका पर ब्रिटिश प्रभुत्व से शुरू हुआ। यह अवधि यूरोप में उग्र राष्ट्रवाद की थी। इसी चेतना से अंग्रेजी का प्रचार किया गया जिसे एक समृद्ध तकनीक सुलभ भाषा द्वारा पिछड़े हुए शेष सभ्यताकरण के रूप में व्याख्यायित किया गया। आज भी अंग्रेजी की पहचान तकनीकी श्रेष्ठता और आधुनिक सभ्यता के स्रोत के रूप में अपरिहार्य स्थिति की तरह मौजूद है।
वैश्वीकरण के इस सघन और उत्कट समय में वह मीडिया कि एकमात्र वर्चस्वशाली भाषा और उच्च तकनीकी विकास का स्रोत बनने के अलावा आधुनिकता के मूल्यों के वाहक भी मानी जा रही है। सूचनाओं के आदान-प्रदान की सुविधा और बहुराष्ट्रीय निगमों में रोजगार की कुंजी के रूप में उसकी सबलता विश्वव्यापी है। अंग्रेजी को हटाने की बात उठते ही यह सवाल पूछा जाता है कि उसकी जगह किस भाषा को लाया जाए? भारत जैसे बहुभाषी देश में ऐसे सवालों का उठना स्वाभाविक है।
प्रख्यात लेखिका मधु किश्वर के अनुसार 'पिछली एक शताब्दी से हमारी शिक्षा पद्धति पर अंग्रेजी की प्रभावी पकड़ होने के बावजूद बहुत छोटी-सी संख्या ऐसी है, जो प्रभावी एवं सही तरीके से यह भाषा बोल सकने में समर्थ है। यहां तक कि अंग्रेजी पढ़े-लिखे वर्ग की भी स्थिति बहुत संतोषजनक नहीं है। हमारे अधिकांश परास्नातक और शोध उपाधि प्राप्त लोग अंग्रेजी में सही तरीके से 3 वाक्य भी नहीं लिख सकते। यद्यपि उन्होंने अपनी सारी परीक्षा अंग्रेजी में ही दी होती है फिर भी वे अंग्रेजी के पीछे भागते हैं, क्योंकि अंग्रेजी का दिखावा भारतीय भाषाओं की तुलना में ज्यादा प्रभावी है। यही कारण है कि आज देश के लोग मध्य एवं निम्न मध्य वर्ग अपने बच्चों को प्राथमिक शिक्षा भी अंग्रेजी में दिलाने के लिए सभी प्रकार के सामाजिक व आर्थिक त्याग करने को तैयार हैं।'
भारतीयों के अपनी भाषाओं के प्रति रवैये को देखें तो ये बड़ी चिंता के कारण हैं। सत्ता, समाज और आर्थिक ढांचे में प्रभुत्वशाली वर्ग की भाषा ही प्रभुत्वशाली भाषा होती है और जनसाधारण उसी भाषा को सम्मानित भाषा समझता है। भारत का ताकतवर वर्ग ज्यादा से ज्यादा अंग्रेजी और किसी हद तक हिन्दी की तरफ खिंचा जा रहा है। अंग्रेजी की ओर खिंचे जाने का बड़ा कारण ताकतवर वर्ग का स्वार्थ है, जो अंग्रेजी भाषा द्वारा शिक्षा, सत्ता और आर्थिकता के सभी क्षेत्रों में अपनी धौंस कायम रखना चाहता है। चेतना की कमी के कारण जनसाधारण प्रभुत्वशाली वर्ग की सत्ता और समृद्धि का एक कारण अंग्रेजी भाषा को समझे बैठा है।
प्रभुत्वशाली वर्ग के स्वार्थ के साथ-साथ राजकीय और प्रशासनिक क्षेत्रों में भाषा नीति के प्रति अज्ञानता भी पौष महीने की अमावस की आधी रात के घोर अंधेरे की तरह छाई हुई है। नतीजे के तौर पर भारतीयों का अपनी भाषाओं के प्रति रवैया कुछ चेतन्य क्षेत्रों को छोड़कर निराशा पैदा करने वाला ही है।
भारतीय भाषाओं जैसी महान भाषाओं के वारिसों के लिए तो आवश्यकता इस सवाल पर चर्चा करने की होनी चाहिए कि भारतीय भाषाओं को अंग्रेजी, फ्रांसीसी, जर्मन, चीनी, अरबी, स्पेनी जैसी ज्यादा चर्चित भाषाओं के बराबर का रुतबा वर्तमान में कैसे दिलवाया जाए। यह बहुत थोड़े सामूहिक प्रयत्नों से संभव है। आवश्यकता बस इसके लिए कायल होने की है।
इंटरनेट और कम्प्यूटर प्रौद्योगिकी ने हर भाषा के बोलने वालों के हाथ में ऐसा हथियार दे दिया है कि किसी भी भाषा को पहले से कहीं कम प्रयत्नों से ऊंचाई पर पहुंचाया जा सकता है। यहां हिब्रू भाषा की मिसाल उत्साह देने वाली है। बाइबल की भाषा हिब्रू बोलचाल में से लोप हो चुकी भाषा थी, पर यहूदी समूह ने विद्यालयों में अपने साधारण से प्रयत्नों से इस को जीवंत भाषा बना दिया है। ऐसे ही यूनेस्को ने अपने प्रयत्नों से कई और भाषाओं को लोप होने से बचाकर विकास के मार्ग पर ला दिया है।
हमें हिंदी भाषा के पक्ष में एक बहस लिखने के लिए कहा जाता है। हिन्दी भाषा के पक्ष में लिखी गई वाद-विवाद इस प्रकार है:
- यह दुनिया भर में बहुत से लोगों द्वारा बोली जाती है।
- यह हमारी मातृभाषा है इसलिए इसे जानना हमारे लिए बहुत जरूरी है।
- हिंदी भाषा को समझकर ही बच्चे अपनी संस्कृति के बारे में जानेंगे।
- जिस तरह से अंग्रेजी भाषा को अंग्रेजों का समर्थन प्राप्त है, उसी तरह हिंदी भाषा को भी हिंदुस्तान में रहने वाले लोगों द्वारा समर्थित किया जाएगा।
- हिंदी सीखने से इन छात्रों के लिए नौकरी के कई अवसर खुलेंगे।
- अंग्रेजी भाषा जो इतनी लोकप्रिय है उसने भी हिंदी से कुछ शब्द उधार लिए हैं।
- हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है इसलिए छात्रों को हिंदी पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
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वाद-विवाद पर अधिक प्रश्नों के लिए देखें :
https://brainly.in/question/14565844
https://brainly.in/question/5274838