हिन्दू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाइ। कहै कबीर सो जीवता, जो दुहुँ के निकटि न जाइ
kavi is sakhi se kya sandesh dena chate h
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हिन्दू कहता है की उसे राम प्यारा है और मुस्लिम कहता है की उसे खुदा प्यारा है. कबीर साहेब का कहना है की जो इन दोनों में नहीं पड़ता है वही जीवित है. कबीर साहेब के समय में दो धर्म प्रमुखता से प्रचलित थे. एक हिन्दू और दुसरा मुस्लिम. मुस्लिम धर्म शासकीय धर्म था क्योंकि यह मुस्लिम राजाओं के द्वारा लोगों पर बलपूर्वक थौपा गया था. ऐसे में हिन्दू धर्म भी बचाव की मुद्रा में था और इनके मानने वालों में अक्सर ही टकराव होता रहता था. दोनों ही धर्म के अनुयायी अपने धर्म को महान मानते थे. कबीर साहेब सदा से ही एक ऐसी शक्ति के पक्षधर थे जो पूर्ण परम ब्रह्म शक्ति है और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की नियामक और रचना करने वाली है. इसका कोई आकार नहीं है वह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त होकर भी ब्रह्माण्ड का नहीं है. ऐसे में साहेब वाणी देते हैं की यह संघर्ष व्यर्थ है. जिस विषय को लेकर यह संघर्ष हो रहा है उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है. भले ही कोई राम को महान और सर्वोच्च माने या कोई खुदा को, कबीर साहेब के मुताबिक़ ना राम नाही खुदा महान है बल्कि वह तो पूर्ण ब्रह्म है जिसका कोई रूप और आकार नहीं है. सही मायनों में जीवित वही है जो पूर्ण परम ब्रह्म का उपासक है, उसी का सुमिरन करता है. जो इन दोनों के निकट नहीं है वही जीवित है / सचेत है. कबीर के अनुसार नियामक शक्ति सगुण और निर्गुण से परे है. वे राम और रहीम के झगड़े से दूर हैं और ऐसे धर्म के पक्षधर हैं जो मानवता के ऊपर आधारित है