हिन्दी में अनुवाद...यथैवोपकरणवतां जीवनं तथैव ते जीवनं स्यात्। अमृतत्वस्य तु नाशास्ति वित्तेन इति। सा मैत्रेयी उवाच- मेनाहं नामृता स्याम् किमहं तेन कुर्याम् ? यदेव भगवान् केवलममृतत्वसाधनं जानाति, तदेव में ब्रूहि! याज्ञवल्क्य उवाच- प्रिया नः सती त्वं प्रियं भाषसे। एहि उपविश, व्याख्यास्यामी तेअमृतत्वसाधनम्।
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हिन्दी में अनुवाद...यथैवोपकरणवतां जीवनं तथैव ते जीवनं स्यात्। अमृतत्वस्य तु नाशास्ति वित्तेन इति। सा मैत्रेयी उवाच- मेनाहं नामृता स्याम् किमहं तेन कुर्याम् ? यदेव भगवान् केवलममृतत्वसाधनं जानाति, तदेव में ब्रूहि! याज्ञवल्क्य उवाच- प्रिया नः सती त्वं प्रियं भाषसे। एहि उपविश, व्याख्यास्यामी तेअमृतत्वसाधनम्।
हिन्दी में अनुवाद इस प्रकार है :
यह पंक्तियाँ ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘आत्मज्ञ एव सर्वज्ञः नामक पाठ से लिया गया है |
पंक्तियों में याज्ञवल्क्य और मैत्रेयी आपस में बात कर रहे है |
मैत्रेयी पूछती है , ” यदि सारी पृथ्वी धन से परिपूर्ण हो जाए तो भी क्या मैं उससे अमर हो। जाऊँगी?” याज्ञवल्क्य बोलते है नहीं ऐसा नहीं होगा |
याज्ञवल्क्य समझाते हुए कहते है कि तुम्हारा भी जीवन वैसा ही हो जाएगा जैसा साधन-सम्पन्नों का जीवन होता है। तुम संपति से अमर हो जाओगी लेकिन आशा से नहीं |
मैत्रेयी बोलती है , ”मैं जिससे अमर न हो सकेंगी (भला) उसका मै क्या करूंगी? हे भगवन | जीवन में जिससे अमरता प्राप्त कर सकते है , वह साधन आप जानते है , तो बताएं |
याज्ञवल्क्य कहते है , तुम मेरी प्रिय हो , प्रिय बोल रही हो आओ, बैठो, मैं तुमसे अमृत तत्च के साधन के बारे में बताऊंगा |