Political Science, asked by manish2015bel, 9 months ago

हिन्द महासागर में भारत की भूमिका​

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Answered by Anonymous
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हिंद महासागर भारत का प्रभाव क्षेत्र है, था और बने रहना चाहिए। इसकी हर लहर पर भारत की संस्कृति सभ्यता और संस्कारों की छाप है।

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Answered by swaralipisantra95
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खैबर और उस ओर से होने वाले हमले इस कदर गत हजार साल से हम पर हावी रहे कि हम प्रायः भूल ही गए कि भारत मूलतः एक सागर देश है। जोथल से चोल साम्राज्य और वर्तमान साढ़े सात हजार किलोमीटर लम्बी समुद्री सीमा वाला राष्ट्र विश्व में अकेला ऐसा उदाहरण है जिसके नाम पर एक पूरा महासागर अफ्रीका से पूर्वी एशिया तक हिलोरें लेता है। विश्व के सबसे पराक्रमी नौ सम्राट भारत ने ही एक हजार वर्ष पूर्व दिए थे, राजेन्द्र चोल, जिस पर नरेन्द्र मोदी सरकार ने डाक टिकट भी जारी किया है।

Explanation:

हिंद महासागर चालीस देशों को स्पर्श करता है, और इसके तटों पर विश्व की चालीस प्रतिशत जनसंख्या बसती है। विश्व के तेल व्यापार का दो तिहाई हिस्सा और सम्पूर्ण माल-वहन का एक तिहाई केवल हिन्द महासागर से गुजरता है। इस क्षेत्र के देश भविष्य और सुरक्षा के लिए भारत की ओर देखते हैं लेकिन अनेक कारणों से न केवल भारत की समुद्री दृष्टि संकुचित रही, बल्कि उसके द्वारा समुद्री-उपेक्षा के कारण भारत-विरोधी घेराबंदी शुरू हो गयी। हिन्द महासागर चीन और अमेरिका की प्रतिस्पर्धा का क्षेत्र बनता गया। चीन ने पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रांत में ग्वादर से लेकर श्रीलंका, मालदीव, म्यांमार तक अपने समुद्री प्रभाव का विस्तार करते हुए भारत के तीनों ओर अपनी सामरिक कुदृष्टि फैलानी शुरू कर दी। 1950 में भारत का व्यापार, वैश्विक तुला पर 2 प्रतिशत था। 2010 में भारत का वैश्विक व्यापार केवल 1.4 प्रतिशत रहा और चीन का था 10.4 प्रतिशत।

सिंगापुर में इंडिया फाउंडेशन के साथ श्रीलंका, बांग्लादेश और सिंगापुर के शिखर विचार संस्थानों ने हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के नेतृत्व की अपरिहार्यता, विश्वसनीयता और सामरिक महत्व को एक साथ मिलकर स्थापित किया। श्रीलंका, मालदीव, सिंगापुर और बांग्लादेश के शिखर नेतृत्व की उपस्थिति, भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का वीडियो पर जीवंत संदेश, सम्मेलन में भारत के नौवहन मंत्री नितिन गडकरी का प्रभावशाली और ओजस्वी उद्बोधन एक ऐसा समां बाध गया कि विश्व के सामरिक विशेषज्ञों को इस सम्मेलन से उभरे भारतीय नेतृत्व के गीत को सुनने पर विवश होना ही पड़ा।

भारत की समुद्री गाथा के नव-चैतन्य को नितिन गडकरी के इन शब्दों ने बढ़ावा दिया कि सागर माला योजना के अलावा भारत ने सागर पारीय समुद्रीय योजनाओं के लिए विशेष उद्देश्य कार्य वाहिका का गठन कर तीव्रता से काम आगे बढ़ाया है। बांग्लादेश के साथ सागर तटीय नौवहन समझौता किया है तो ईरान में चार बहार बंदरगाह का विकास कर रहे हैं। इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब हाल ही में किया तो चीन की पीड़ा बढ़नी स्वाभाविक ही थी।

हिंद महासागर भारत का समुद्री क्षेत्र है। इस पर भारत का नेतृत्व बने, बढ़े और स्वीकार्य हो, इसके लिए बहुविध प्रयासों की आवश्यकता है। सिंगापुर के विदेश मंत्री विलियम बालकृष्ण ने ठीक ही कहा कि हिंद महासागर क्षेत्र संस्कृत, हिन्दू धर्म, इस्लाम के छंदों से गुंथिल है। श्रीश्री रविशंकर ने कहा कि पश्चिम व्यापार के लिए जाना जाता रहा लेकिन अब समय आ गया कि पूर्व की आध्यात्मिकता पश्चिम को मार्ग हीन दिखाए बल्कि हिन्द महासागर को शांति का क्षेत्र बनाने में प्रबल भूमिका निभाए।

समय आ गया है कि जब नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत अपनी समुद्री जिम्मेदारियों को समझे। यह क्षेत्र चीन या अमेरिका के हवाले नहीं किया जा सकता। राम माधव ने सिंगापुर में भारत सागर मंथन के माध्यम से जो कर दिखाया उसका प्रभाव आने वाले वर्षों में दिखेगा। समय आ गया है जब भारत की राजनीति समुद्री राजनीति में तब्दील हो। सिर्फ बिहार, राजस्थान या जम्मू कश्मीर भारत नहीं हैं। जिस प्रकार जी-20 तथा पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में नरेंद्र मोदी ने भारत के वैश्विक नेतृत्व की छाप छोड़ी है, उसी प्रकार हिंद महासागर क्षेत्र से भारत के नेतृत्व की धाक और छाप को मजबूत करना ही होगा वरना भविष्य हमें माफ नहीं करेगा।

हिंद महासागर भारत का प्रभाव क्षेत्र है, था और बने रहना चाहिए। इसकी हर लहर पर भारत की संस्कृति सभ्यता और संस्कारों की छाप है। इसे वापस बटोर कर भारत की ओर लाना हमारा अगला बड़ा राष्ट्रीय एजेंडा होना ही चाहिए। प्रसन्नता की बात है कि नरेंद्र मोदी हिन्द महासागर को हिंद की ओर लौटा रहे हैं। इस महान उद्देश्य के लिए सारथी बने राम माधव को साधुवाद देना ही होगा।

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