Hindi, asked by bajrangsingh34, 10 months ago

हिन्दी साहित्य भाषा में खड़ी बोली हिन्दी की
प्रारम्भिक स्थिति पर प्रकाश डालें।​

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Answered by SimrenLalwani
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Explanation:

खड़ीबोली का विकास

खड़ीबोली परिचय

शाहिद इलियास

शब्दार्थ की दृष्टि से खड़ी बोली हिन्दी का अर्थ हिन्द का होते हुए भी इसका प्रयोग उत्तर भारत के मध्य में बोली जानेवाली भाषा के लिए होता है। खड़ी बोली हिन्दी भारत की सबसे अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है। व्यवहार में यह उस भूभाग की भाषा मानी जाती है. जिसकी सीमा पश्चिम में जैसलमेर, उत्तर-पशिचम में अम्बाला, उत्तर में शिमला से लेकर नेपाल के पूर्वी छोर तक के पहाड़ी प्रदेश, पूर्व में भागलपुर, दक्षिण-पूर्व में रायपुर तथा दक्षिण-पशिचम में खंडवा तक पहुंचती है। इस विशाल भूभाग के निवासियों के साहित्य, पत्र-पत्रिका, शिक्षा-दीक्षा, आपस में वार्तालाप इत्यादि की भाषा खड़ी बोली हिन्दी है, जिसे स्थानीय बोलियों की छाया मिली रहती है। शिष्ट बोलचाल के अतिरिक्त स्कूलों-विद्यालयों में शिक्षा-दीक्षा की भाषा एकमात्र खड़ी बोली है। यह भाषा खड़ी बोली हिन्दी है।

विभिन्न नाम

खड़ी बोली अनेक नामों से अभिहित की गई है यथा౼हिंदुई, हिंदवी, दक्खिनी, दखनी या दकनी, रेखता, हिंदोस्तानी, हिंदुस्तानी आदि। डॉ॰ ग्रियर्सन ने इसे वर्नाक्युलर हिंदुस्तानी तथा डॉ॰ सुनीति कुमार चटर्जी ने इसे जनपदीय हिंदुस्तानी का नाम दिया है। डॉ॰ चटर्जी खड़ी बोली के साहित्यिक रूप को साधु हिंदी या नागरी हिंदी के नाम से अभिहित करते हैं। परंतु डॉ॰ ग्रियर्सन ने इसे हाई हिंदी का अभिधान प्रदान किया है।

खड़ीबोली के नाम के आधार

खड़ी बोली शब्द का प्रयोग आरम्भ में उसी भाषा शैली के लिए हुआ, जिसे 1823 ई. के बाद 'हिंदी' कहा गया। किंतु जब प्राचीन या प्रचलित शब्द ने 'खड़ी बोली' का स्थान ले लिया तो खड़ी बोली शब्द उस शैली के लिए बहुत कम प्रयुक्त हुआ, केवल साहित्यिक संदर्भ में कभी कभी प्रयुक्त होता है। इसी प्रकार जब यह मत प्रसिद्ध हो गया कि हिंदी, उर्दू और हिंदुस्तानी की मूलाधार बोली ब्रजभाषा नहीं वरन दिल्ली और मेरठ की जनपदीय बोली है, तब उस बोली का अन्य उपयुक्त नाम प्रचलित ना होने के कारण उसे 'खड़ी बोली' ही कहा जाने लगा। इस प्रकार खड़ी बोली का प्रस्तुत भाषाशास्त्रीय प्रयोग विकसित हुआ। प्राचीन कुरु जनपद से सम्बंध जोड़कर कुछ लोग अब इसे 'कौरवी बोली' भी कहने लगे हैं, किंतु जब तक पूर्णरूप से यह सिद्ध ना हो जाए कि इस बोली का विकास उस जनपद में प्रचलित अपभ्रंश से ही हुआ है तब तक इसे कौरवी कहना वैज्ञानिक दृष्टि से युक्तियुक्त नहीं।

खड़ी बोली बहुल क्षेत्र

खड़ी बोली निम्न लिखित स्थानों के ग्रामीण क्षेत्रों में बोली जाती है- मेरठ, बिजनौर, मुज़फ़्फ़रनगर, सहारनपुर, देहरादून के मैदानी भाग, अम्बाला, कलसिया और पटियाला के पूर्वी भाग, रामपुर और मुरादाबाद। बाँगरू, जाटकी या हरियाणवी एक प्रकार से पंजाबी और राजस्थानी मिश्रित खड़ी बोली ही हैं जो दिल्ली, करनाल, रोहतक, हिसार और पटियाला, नाभा, झींद के ग्रामीण क्षेत्रों में बोली जाती है। खड़ी बोली क्षेत्र के पूर्व में ब्रजभाषा, दक्षिण पूर्व में मेवाती, दक्षिण पश्चिम में पश्चिमी राजस्थानी, पश्चिम में पूर्वी पंजाबी और उत्तर में पहाड़ी बोलियों का क्षेत्र है।

बिहार, झारखण्ड, उत्तरप्रदेश, उत्तरांचल, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश एवं हरियाणा हिंदी (खड़ी बोली) भाषाभाषी राज्य हैं। दूसरे शब्दों में, खड़ी बोली हिन्दी पश्चिम में जैसलमेर, उत्तर-पशिचम में अम्बाला, उत्तर में शिमला से लेकर नेपाल के पूर्वी छोर तक के पहाड़ी प्रदेश, पूर्व में भागलपुर, दक्षिण-पूर्व में रायपुर तथा दक्षिण-पशिचम में खंडवा तक बोली जाती है। भारत के बाहर (म्यांमार, लंका, मॉरिशस, ट्रिनिडाड, फीजी, मलाया, सूरीनाम, दक्षिण और पूर्वी अफ़्रीक़ा) भी हिन्दी बोलनेवालों की संख्या काफ़ी है।

उदभव और विकास

हिन्दी साहित्य का इतिहास अत्यंत विस्तृत व प्राचीन है। हिन्दी भाषा के उद्भव और विकास के सम्बन्ध में प्रचलित धारणाओं पर विचार करते समय हमारे सामने हिन्दी भाषा की उत्पत्ति का प्रश्न दसवीं शताब्दी के आसपास की प्राकृताभास भाषा तथा अप्रभंश भाषाओं की ओर जाता है। अपभ्रंश शब्द की व्युत्पत्ति और जैन रचनाकारों की अपभ्रंश कृतियों का हिन्दी से सम्बन्ध स्थापित करने के लिए जो तर्क और प्रमाण हिन्दी साहित्य के इतिहास ग्रन्थों में प्रस्तुत किये गये हैं उन पर विचार करना भी आवश्यक है। सामान्यतः प्राकृत की अन्तिम अपभ्रंश अ

वस्था से ही हिन्दी साहित्य का आविर्भाव स्वीकार किया जाता है। उस समय अपभ्रंश के कई रूप थे और उनमें सातवीं-आठवीं शताब्दी से ही पद्य रचना प्रारम्भ हो गयी थी।

साहित्य की दृष्टि से पद्यबद्ध जो रचनाएँ मिलती हैं वे दोहा रूप में ही हैं और उनके विषय, धर्म, नीति, उपदेश आदि प्रमुख हैं। राजाश्रित कवि और चारण नीति, श्रृंगार, शौर्य, पराक्रम आदि के वर्णन से अपनी साहित्य-रुचि का परिचय दिया

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