Hindi, asked by Anonymous, 4 months ago

हेनरी फेयोल द्वारा प्रतिपादित प्रबंध के किन्ही पाँच सिद्धआंतो को समझाए ​

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Answered by Anonymous
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Explanation:

श्रम का विभाजन - इस सिद्धांत के अनुसार, पूरे काम को छोटे कार्यों में विभाजित किया जाना चाहिए। किसी व्यक्ति के कौशल, श्रम शक्ति के भीतर विशिष्ट निजी और व्यावसायिक विकास का निर्माण और उत्पादकता में वृद्धि के अनुसार कार्यबल विशेषज्ञता को बांटे जिससे श्रम की दक्षता बढ़ जाएगी।

प्राधिकरण और उत्तरदायित्व' - यह जिम्मेदारी के बाद उनके परिणामों के लिए आदेशों का मुद्दा हैं। प्राधिकरण का मतलब है कि उसके अधीनस्थों (Subordinate) को आदेश देने के लिए वरिष्ठ का अधिकार; उत्तरदायित्व का मतलब है प्रदर्शन के लिए दायित्व।

अनुशासन - यह आज्ञापालन, दूसरों के संबंध में उचित आचरण, अधिकार का सम्मान आदि हैं। सभी संगठनों के सुचारु संचालन के लिए यह आवश्यक है।

आदेश की एकता - यह सिद्धांत बताता है कि प्रत्येक अधीनस्थ (Subordinates) को आदेश प्राप्त करना चाहिए और केवल एक अधिकारी के प्रति जवाबदेह होना चाहिए। अगर किसी कर्मचारी को एक से अधिक अधिकारी से आदेश प्राप्त होता है तो यह भ्रम और संघर्ष पैदा करने की संभावना रखता है।

दिशा की एकता - सभी संबंधित गतिविधियों को एक समूह के तहत रखा जाना चाहिए। उनके लिए कार्रवाई की एक योजना होनी चाहिए और वे एक प्रबंधक के नियंत्रण में होनी चाहिए।

आपसी हित के लिए व्यक्तिगत रुचि की अधीनता - प्रबंधन को निजी विचारों को अलग करना चाहिए और कंपनी के उद्देश्यों को सबसे पहले रखा जाना चाहिए। इसलिए संगठन के लक्ष्यों के हितों को व्यक्तियों के निजी हितों पर प्रबल होना चाहिए।

पारिश्रमिक - श्रमिकों को पर्याप्त रूप से भुगतान किया जाना चाहिए क्योंकि यह कर्मचारियों का मुख्य प्रेरणा है और इसलिए उत्पादकता को बहुत प्रभावित करता हैं। क्वांटम और देय पारिश्रमिक के तरीके को उचित और तर्कसंगत होना चाहिए।

केंद्रीयकरण का स्तर - केंद्रीय प्रबंधन के साथ संचलन वाली शक्ति की मात्रा कंपनी के आकार पर निर्भर करती हैं। केंद्रीकरण का मतलब है शीर्ष प्रबंधन में निर्णय लेने वाले प्राधिकरण की एकाग्रता है।

प्राधिकरण/स्केलर शृंखला की रेखा - यह शीर्ष प्रबंधन से सबसे कम रैंक तक लेकर वरिष्ठों की श्रृंखला को संदर्भित करता हैं। सिद्धांत बताता है कि सभी स्तरों पर सभी प्रबंधकों को ऊपर से नीचे तक अधिकार की एक स्पष्ट रेखा होनी चाहिए।

व्यवस्था (ऑर्डर) - सामाजिक व्यवस्था (सोशल ऑर्डर) एक कंपनी के तरल संचालन को आधिकारिक प्रक्रिया से सुनिश्चित करता हैं। सामग्री व्यवस्था (मैटेरियल ऑर्डर) कार्यस्थल में सुरक्षा और दक्षता सुनिश्चित करता हैं। ऑर्डर स्वीकार्य और कंपनी के नियमों के तहत होना चाहिए।

न्यायसम्य (Equity) - कर्मचारियों से दयालु रूप से व्यवहार किया जाना चाहिए, और सिर्फ कार्यस्थल सुनिश्चित करने के लिए न्याय का अधिनियमित होना चाहिए। कर्मचारियों के साथ व्यवहार करते समय प्रबंधकों को उचित और निष्पक्ष होना चाहिए, सभी कर्मचारियों पर समान ध्यान देना।

कर्मचारियों के कार्यकाल की स्थिरता - कर्मियों के कार्यकाल की स्थिरता यह बताती है कि संगठन को आसानी से चलाने के लिए कर्मियों (विशेष रूप से प्रबंधकीय कर्मियों) को अक्सर संगठन में प्रवेश करने और बाहर निकलना नहीं चाहिए।

पहल (Initiative ) - कर्मचारियों की पहल का उपयोग किसी संगठन में ताकत और नए विचार जोड़ सकते हैं। कर्मचारियों के लिए पहल संगठन के लिए ताकत का एक स्रोत है क्योंकि यह नए और बेहतर विचार प्रदान करता हैं। इससे कर्मचारी को संगठन के कामकाज में बहुत रुचि लेने के लिए की संभावना हो सकती है।

सहयोग की भावना - यह कार्यस्थल में मनोबल को सुनिश्चित करने और विकसित करने के लिए प्रबंधकों की आवश्यकता को दर्शाता है; व्यक्तिगत और सांप्रदायिक रूप से। सहयोग की भावना से परस्पर विश्वास और समझ के माहौल को विकसित करने में मदद करती हैं। इससे समय पर कार्य समाप्त करने में भी मदद करती है।

Answered by Sneha19062006
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Explanation:

प्रबन्ध विज्ञान ने आधुनिक विश्व को उन्नति के अनेक अवसर प्रदान किये हैं । इस विज्ञान के विकासक्रम में अन्य सामाजिक विज्ञानों की भांति कुछ सिद्धान्तों का विकास हुआ है । प्रबन्ध के सिद्धान्तों का प्रतिपादन अनेक विद्वानों के अध्ययन, अनुसन्धान एवं अनुभव का परिणाम है ।

प्रबन्ध की सिद्धान्त परिस्थिति सापेक्ष तथा व्यवहार निष्ठ हैं । हेनरी फेयोल के अनुसार ‘प्रबन्ध के सिद्धान्त पूर्ण रूप से लचीले तथा प्रत्येक परिस्थिति में लागू करने योग्य होने चाहिये ।’ प्रबन्ध की तकनीकी का अत्यधिक विकास हुआ है तथा अनेक विद्वानों ने प्रबन्ध के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है । हेनरी फेयोल को प्रबन्ध के आधुनिक सिद्धान्तों का जन्मदाता कहा जाता है क्योंकि उन्होंने ही प्रबन्धकीय सिद्धान्तों की आवश्यकता का सर्वप्रथम अनुभव किया ।

ADVERTISEMENTS:

एक सफल प्रबन्ध के लिए हेनरी फेयोल द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त इस प्रकार हैं:

1. कार्य विभाजन (Division of Work):

यह कार्य विशिष्टता का सिद्धान्त है । यह सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक कार्य के लिए योग्य नहीं होता और न ही एक व्यक्ति को अनेक कार्य करने के लिए देने से वह किसी कार्य में दक्ष हो सकता है । अतः यह आवश्यक है कार्य का विभाजन कर विशिष्ट व्यक्तियों को विशिष्ट कार्य के लिए नियुक्त किया जाये ताकि लक्ष्य प्राप्ति के लिए अधिक तीव्रता से आगे बढा जा सके ।

ADVERTISEMENTS:

2. प्राधिकार एवं उत्तरदायित्व (Authority and Responsibility):

फेयोल के अनुसार प्राधिकार तथा उत्तरदायित्व एक-दूसरे से संबंधित तथा हैं । प्राधिकार के अभाव में कोई व्यक्ति अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह नहीं कर सकता है । अतः यह आवश्यक है कि जिन व्यक्तियों को कार्य करने का दायित्व सौंपा जाये, उन्हें आवश्यक अधिकार भी दिये जाने चाहिए ।

3. अनुशासन (Discipline):

ADVERTISEMENTS:

निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए किसी व्यक्ति या समूह को नीतियों, नियमों, कार्य विधियों तथा निदेशों का पालन करना पडता है और इसी परिस्थिति को अनुशासित कार्य की संज्ञा दी जा सकती है ।

अनुशासन एक विस्तृत शब्द है जिसमें किसी संस्था के कर्मचारियों की आज्ञाकारिता, व्यवहार तथा आदर की अभिव्यक्ति है । अनुशासन बनाये रखने से संस्थागत लक्ष्य प्राप्त करने में पूर्ण सहायता मिलती है ।

4. आदेश की एकता (Unity of Command):

कार्य करने वाले व्यक्ति को एक समय में एक ही अधिकारी से आदेश मिलना चाहिए । आदेश देने वाले अधिक होने पर अनुशासन भंग होता है, अधिकार कमजोर पड़ता है तथा श्रमिक की प्रवृत्ति काम टालने की हो जाती है । अतः यह सिद्धान्त अनेक अधिकारियों के स्थान पर एक ही अधिकारी का औचित्य मानता है ।

5. निर्देश की एकता (Unity of Direction):

एक ही प्रकार के कार्यों के लिए एक ही निर्देश तथा एक ही योजना होनी चाहिए । निर्देशों की एकता से फेयोल का आशय है कि ”सामान्य उद्देश्य के लिए व्यक्तियों के एक समूह के लिए एक निर्देश होना चाहिए ।” फेयोल के अनुसार- ”संगठन के कुशलतापूर्वक संचालन के लिए निर्देशों की एकता महत्वपूर्ण है जबकि कर्मचारियों के कुशलतापूर्वक कार्य सम्पन्न करने के लिए आदेश की एकता आवश्यक है ।”

6. सामान्य हित के सामने व्यक्तिगत हित गौण (Subordination of Individual Interest to General Interest):

किसी समूह में व्यक्तिगत हित की अपेक्षा सामूहिक हित को अधिक महत्व दिया जाता है । यद्यपि व्यक्तिगत और सामूहिक हितों में समन्वय रखना प्रबन्धकों का प्रमुख दायित्व है फिर भी यदि इनमें कहीं टकराव होता है तो सामूहिक हितों की रक्षार्थ व्यक्तिगत हितों को समर्पित कर देना चाहिए ।

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