World Languages, asked by Aryan257553, 6 months ago

हे नर! जानीहि त्वं निज-देशम्
नयन-मनोहर-निज-परिवेशम्।
यदपि विदेशे भिन्नं वेशम्
तस्मिन् मा कुरु मोहावेशम्॥
गौरवमनुभव भारतमाता
तव जननी, त्वं जगत: त्राता।
भव निर्मोह: भज परितोषम्
अपि संसारं रचय विशोकम् ॥
निखिलं विश्वं तव परिवार:
भारतमेकं भुवने सारम्।
हिमगिरि-मुकुटं गङ्गाहारम्
ऋषि-मुनि-सेवित-स्वर्ग-द्वारम् ।।
'अर्जय ज्ञानं भज विज्ञानम्
दीन-जनेभ्य: अर्पय दानम्।
निज-राष्ट्रस्य कुरु उत्थानम्
लभसे यस्मात् अन्नं पानम्॥
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Answered by mahak87891
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