है?
पर्वत की छाती को तोड़,
सर्वत ऊँची चोटी पीछे छोड़।
बढ़ जाता सबको झकझोर.
करता चलता हरदम शोर।
मिले राह में पेड़-पहाड़,
ओ। चाहे मिलें झाड़-झंखाड़।
लड़ता है सबसे भरपूर,
करता पल में सबको चूर।।
मस्ती में गाता है गान,
देता सबको जीवनदान।
जहाँ-जहाँ भी बहती धार,
र, छा जाती है वहाँ बहार।।
चलना ही बस उसका काम.
करता नहीं कभी आराम।
बढ़ता मन में ले उल्लास,
मंज़िल खुद आ जाती पास।।
न।
नी
?
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Thanks for following me Anisha. And thanks for accepting my friendship
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